पउमचरिउ वॉ २ (१९५८) एसी ५५१३ | Paumchhriu Vol 2 (1958)ac 5513

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Paumchhriu Vol 2 (1958)ac 5513 by देवेन्द्रकुमार जैन - Devendra Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पद्मचरित अयोध्याकाण्ड इकीसवीं सन्धि [ १ ] ण्क दिन विभोपणने सागरवुद्धि भट्टारकसे पूछा कि “जयलद॒मीके प्रिय, रावणकी विजयः, जीवन ओर गाञ्य, कितने समय तक अविचल रहेगा ।” तब उन्होंने कहा-“'सुनो; में बताता हु अयोध्याके रघुबंशमें दशरथ नामका मुख्य राजा होगा; उसके दो पुत्र घुरंघर घलुधोरी, बासुदेव और ब्रढदेव होगे, राजा जनककी कन्याको लेकर; होनेवाले महायुद्धमें रावण उनके द्वारा मारा जायगा” । यह सुनकर विभीपण एकदम उत्तेजित हो उठा मानो 'पीका घड़ा आगमें पड़ गया हो । उसने कहा--“लंकाकी बेल न सूखे और रावणका मरण न हो; इसछिए क्यों न मैं, भयभीषण दशरथ ओर जनकके सिरोको तुड़वा दूँ” । यह जानकर कलहकारी नारद वधमान नगर पहुँचा । उसने दशरथ और जनकसे कहा कि आज विभीषण आयगा और तुम दोनोंके सिर तोड़ देगा । तब; वे दोनों अपनी लेपमयी मूर्ति स्थापित करवा कर बहाँसे चल दिये । बिद्याघर आये और उन्हीं लेपमयी मूर्तियोंके सिर काटकर ले गये ॥ १-१० ॥




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