छेद सूत्र | Chhed Sutra

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Chhed Sutra by अमर मुनि - Amar Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जफफऊफफफफ््फ़फक्ककफफ़अऊफकफकफककफकफ़अफफफाफाकफफाफफफ़ककमट फकफफकफकफफ़कफफ्मकफ़फफ़फ़फफकफमफ़फफ़फफ़फफकफ़फफफफकफफफकफफफकफफफफफकक घर दशाश्रुतस्कध का पाठ सम्पादन करने व अनुवाद विवेचन लिखने मे आचार्यसम्राट्‌ श्री आत्माराम जी म सा द्वारा सम्पादित प्रति (सह सम्पादक डॉ. सुब्रत मुनि शास्त्री) मुख्य आधारभूत रही है। किन्तु इस प्रति में प्राचीन प्रतियो के आधार पर पाठ लिया हुआ है। इसे प्राचीन प्रतियो के प्राप्त पाठ आधारों पर पुनः संशोधित कर, बीच-बीच मे छूटे हुए पाठ सयोजित कर आगम अनुयोग प्रवर्तक उपाध्याय श्री कन्हैयालाल जी म. 'कमल' ने 'आचारदशा' का सुन्दर सम्पादन किया है। आचार्य श्री घासीलाल जी म. ने भी प्राचीन टीका ग्रन्थों के आधार पर 'दशाश्रुतस्कन्ध' सूत्र पर संस्कृत टीका लिखी है। मैने उक्त तीनो प्रतियो का अवलोकन कर यह सम्पादन विवेचन किया है। दशाश्रुतस्कन्ध का नवम अध्ययन मोहनीय स्थान ओर दशम अध्ययन आयति स्थान तो श्रमण तथा श्रमणोपासक दोनो के लिए ही विशेष मननीय है। मोहनीय स्थान का वर्णन तो पूर्णं रूप से मनुष्य की सामाजिक व नैतिक चेतना को परिष्कृत कटने वाला ओर आदर्श आचार सहिता का सूचक है। (२) बृहत्कल्य सूत्र-इस सूत्र का प्राचीन नाम 'कप्पसुत्त है, किन्तु जब से पर्युषणा कल्प को कल्य सूत्र के रप मे प्रसिद्धि मिली तब से उससे भिन्नता सूचित करने के लिए 'कप्पसुत्त' को बृहत्कल्प सूत्र सज्ञा दे दी गई। नन्दी सूत्र मे इसका नाम “कप्पो' ही है । बृहत्कल्प नाम किसी प्राचीन सूची में नही मिलता है। कल्प शब्द के अनेक अर्थ होते है। मुख्य रूप मे आचार, मर्यादा, धर्म-मर्यादा तथा राजनीति की मर्यादा का सूचन “कल्प' शब्द से होता है। बारह कल्प देवलोको मे राजनीति की मर्यादा मुख्य होने से उन्हे कल्पविमान कहा जाता है। प्रस्तुत सूत्र मे कल्प सूत्र धर्म-मर्यादा या आचार -मर्यादा का सुचक है । जिस सूत्र मे धार्मिक जीवन की आचार-मर्यादा आदि का कथन है--उसे क्प सुत्त' कल्प सूत्र कहा है । इसके छह उदेशक या अध्ययन है। कप्प सुत्त मे ८० विधि निषेध कल्प है। इनमे पांच महाव्रत तथा पांच समितियो की शुद्धि से सम्बन्धित ८० प्रकार के विधि-निषेध का वर्णन है। सबसे अधिक एषणा समिति से सम्बन्धित विषयों का विस्तृत वर्णन मिलता है। कल्प-अकल्प के विधि ओर निषेध का ज्ञान करना श्रमण जीवन का मुख्य आवश्यक विषय है। इस दृष्टि से इस सूत्र की श्रमण जीवन मे बहुत अधिक उपयोगिता है। (३) व्यवहार सूत्र-यह तृतीय छेद सूत्र है । व्यवहार सूत्र की वैयाकरणीक परिभाषा है। वि + अव + हर = व्यवहार। जिससे विवादित विषयो का अवहरण अर्थात्‌ निराकरण तथा सशयास्पद विषयो का निर्धारण होता है, उस शास्त्र का नाम है व्यवहार । जैसा कि कहा गया है- नाना तन्देहहरणात्‌ यवहार इति स्थितिः। कात्यायन व्याकरण व्यवहार सूत्र के भाष्यकार (पीठिका गाथा २) का कथन है -इस सूत्र मे व्यवहार, व्यवहारी तथा व्यवहर्तव्य ये तीन प्रमुख विषय है- (१) व्यवहार अर्थात्‌ साधन। जैसे पाँच प्रकार के व्यवहार। (र) व्यवहारी-गण व गच्छ की शुद्धि करने वाले गीतार्थं आचार्यादि। (३) व्यवहर्तव्य-व्यवहार करने योग्य, श्रमण-श्रमणियाँ। नि ना (10) धी धी ॐ धी छी ५ धी रि ५ री ५ री री 4 ५ श धी कफ शी शी र शी शी र ध्वी श्री 4 4 छी 0 धी छा शी आ छी शी न 1.1. 1.11.1.1.1.1.11111.1.1111. 211... 17.11.111... 23 ५




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