सुख यहाँ भाग ३-४ | Sukh Yahan Bhag 3-4

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Book Image : सुख यहाँ भाग ३-४  - Sukh Yahan Bhag 3-4

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पवन कुमार जैन - Pavan Kumar Jain

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सहजानन्द महाराज - Sahjanand Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वोह इ~द ११ नै राश्भ्येषि हि नैराश्यं तस्य का तुसना सवि) प्रतो नैरोश्यमालम्न्य स्या स्वस्मै स्वे सुखी स्वयम्‌ \।४-६४। जगत्‌के प्रत्य जितने भी पदाथ हैं ने सब स्वतंत्र हैं, जुदा हैं । सबका स्वरूप स्यारा ग्या है। जितने भी जीव हैं वे सब धपने-ध्पने स्वरूपमें हैं धोर जितने दिखने थाले पीदगलिक पदार्थ हैं वे सब भी भपने-भपतेमें स्वतंत्र है । स्वतंघके मायने यह ह कि सज भपनी-भपली स्वरूप सत्तासे हैं । वे सब कोई किसी दूसरेकी सत्तासे नह्दीं हैं । इसी कारण मैं कुछ विचा- रता हूं तो उस विघारके कारण भापमे कुछ बात पैदा - नहीं होती । भाप कुछ सोचते हैं, करते हैं, उसके कारण भरन्यमे कोई बात पैदा नहीं होती । हम झपना हो काम करने वाले हैं, शाप भ्रपना ही काम करने वाले हैँ । जगत्‌करे सारे जीब भपना-भपना काम किया करते हैं। यही एवज है कि एक जीवका स्वामो दूसरा जीव नहीं है । किसी पर तुम्हारा भधिकास नहीं है। जब ऐसी बात है तब किसकी भाशा रखना कि हमें इससे लाभ मिलेगा । भ्राशा करना व्यर्थं है । भैया, कभी प्राशाके प्रसुसार कोई काम बन गया तो यह न सोचो कि हमने ऐसी प्राणाकी थी इससे काम बन मया) बाहरमे तो जब जिसका जो होता है होता ही है । वहाँ हमारा किसीसे मेल खा जाय यह दूसरी बात हे । हमने भ्राशा की, इसलिए यह काम बना यह बात बिल्कुल गलत है । हम तो वहाँ केवल भपना विचार ही बना सके, विकल्प प्रौीर ख्याल हो कर सके, इसके सिवाय बाहरमें कुछ नहीं किया । जो मोहो जीव है, भहूं- कारसे पूर्ण वासनाएं बनाए हुए है कि यह मेरा मकान है, यह मेरा घर है, यह मेरी दुकान है, यह मेरा कुटुम्ब है । पे मेरे परोपकार करने वाले हैं । धाशाएं रखना! हो ध्रशान है । यहीं जीवका मोह है । ज्ञानी जोब तो यह विश्वास रखता है कि मैं तो झपना शानस्वरूप कर सकता हूँ घोर इससे प्रघिक भगर बिगड़ गया तो राम द्वेष कर लिया, भपनेको सत्ता लिया, भपनेको ही कर लिया । जैसा बन पाया वसा कर लिया । मैं टूसरोंका कुछ नहीं कर सकता भोर इसी तरहसे दूसरे मेरा कुछ नहीं कर सकते । ऐसा शान जब जगता है तो परपद्थौको माणा चुट नाती दहै । तब वास्तविक शान क्या है ? भ्ाशा न रखना ¦ धाता कर करके हीदुःखोहो दहे हैं । लोगोंने बचपनसे लेकर प्रब तक क्रितनो हौ भाशाएं नहीं कों, पर हे भाशा ! बतला तू बब तक किसीको हो सको ? नहीं हो सकी । रो भाषा, तेरे लिए क्या-क्या काम नहीं किया ? कहाँन्कहँ नहीं घूमा ? कोन न्कोनसी चोलोंमें निगाह नहीं दौड़ाई ? सब कुछ करू डाला, बता भव वक रानी हुई कि नहीं ? राजो हो गई तो ठीक है, नहीं हुई सो तू जा, थो कुछ




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