भारतीय वास्तुकला का इतिहास | Bharatiya Vastukala Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ धामिक तथा लौकिक पृष्ठ भूमि स्थापत्य या वास्तु को एक ललित कला माना गया है । चिव्रकला, मूतिकला, साहित्य तथा नाटच अन्य मुख्य ललित कलाएं हैँ । भारतीय परम्परा मे वास्तु को वेदांग से समुद्‌भूत कहा गया है । इसका विशेष सम्बन्ध ज्यौतिष तथा कल्पं के साथ जोड़ा गया है। स्थापत्य को कुछ लेखकों ने चार उपवेदों मे से एक स्वीकार किया है । स्थापत्य भवन-निर्माण कला है । प्रागैतिहासिक युग से मानव को जीवन-रक्षा के लिए किसी आश्रय की आवश्यकता पड़ी । प्रारम्भ में तरुमूल, उनकी शाखाएँ अथवा पर्वतों की कन्दराएँ आदिम जन के आश्रय बने । इनमें पहाड़ की गुफाएँ (शिलाश्रय ) अधिक सुविधाजनक थीं । अधिकांश गुफाएँ प्राकृतिक थीं । कालान्तरं मे मानव दवारा पहाड़ को काट-छाँटकर निवास के लिए गुफाएँ बनायी जाने लगीं । शिलाश्रयों में रहने वाले लोग कभी-कभी गुफाओं की भीतरी छतों और दीवारों पर अनेक ढंग की रोचक चित्न-रचना करते थे । उनके द्वारा बनाये गये चित्र भारत में सबसे अधिक मध्य प्रदेश में प्राप्त हुए हैं। मंदसौर, नरसिहगढ़, सीहोर, रायसेन, होशंगाबाद, सागर, पन्ना, रीवां, अम्बिकापुर तथा रायगढ़ जिलों के अनेक स्थानों मेँ इन आदिम जनो के निवास के अवशेष मिले हैं । इनमे पत्थर के अनेक प्रकार के औजार तथा मिट्टी के बतेन भी हैं । उन लोगों के बनाये हुए चितो मे से बहुत से आज भी उनके दारा सैकड़ों वषे पूव आवासित गुफाओं में सुरक्षित हैं । उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर तथा बाँदा जिलों के कई पर्वतीय स्थानों में भी ऐसे अनेक गुफा-चित्र मिले हैं। अधिकांश गुफा-चित्नों में लाल, सफेद, काला, नीला या पीला रंग प्रयोग में लाया गया । कई जगह भित्तियों पर पहले लाल या सफेद रंग की पृष्ठभूमि देकर उस पर चित्र उरेहे गयें। प्राचीन गुफा-चित्रों से वहाँ निवास करने वाले लोगों की जीवन-चर्या तथा रुचि का पता चलता है। मुख्यतया जो दृश्य इन चित्रों में मिलते हैं, वे हैं-विविध आयुधों से पशु-पक्षियों का शिकार, जानवरों की लड़ाई, मानवों में पारस्परिक युद्ध, पशुओं पर सवारी, गीत, नृत्य, पजन, मधु-संचय तथा घरेलू जीवन-सम्बन्धी अनेक दश्य । लोगों




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