तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा | Tirtharth Mahvir Aur Unki Acharya Prampra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
670
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about नेमीचन्द्र शास्त्री - Nemichandra Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कृष्णा अमावस्या, वीर-निर्वाण संवत् २५०२, दिनाङ्क १२३ नवम्बर १९७५ तक
पुरे एक वषं मनायी जावेगी । यह् मङ्गल-प्रसङ्ध भो उक्त ्रन्थ-निर्माणके किए
उत्प्रेरके रहा ।
अतः अखिल मारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्रत्परिषद्ने पचि वषं पूवं इस
महाच् दुलंभ अवसरपर तीर्थंकर महावीर और उनके दर्शनसे सम्बन्धित विशाल
एवं तथ्यपु्ण ग्रन्थके निर्माण और प्रकादानका निरचय तथा संकल्प किया ।
परिषदुने इसके हेतु अनेक बेठकें कीं और उनमें ग्रन्थकी रूपरेखापर गम्भीरत्तासे
कहापोह किया । फलत: ग्रन्थका नाम 'तीथंडूर महावीर और उनकी आचायं-
परम्परा' निर्णीत हुआ और लेखनका दायित्व विद्वत्परिषदुके तत्कालीन अध्यक्ष,
अनेक ग्रन्थोंके लेखक, मूर्घन्य-मनीषी, आचाय॑ं नेमिचन्द्र शास्त्री आरा (बिहार)
ने सहषं स्वीकार किया । आचाय॑ शास्त्रीने पाँच वर्ष लगातार कठोर परिश्रम,
अद्भूत लगन ओौर असाधारण अध्यवसायसे उसे चार खण्डों तथा लगभग २०००
(दो हजार) पृष्ठोंमें सूजित करके ३० सितम्बर १९७२ को विदरत्परिषदको प्रकाश-
नाथं दे दिया )
विचार हुआ कि समग्र ग्रन्थका एक बार वाचन कर छिया जाय । आचायं
शास्त्री स्या्ाद महाविद्ययाख्यकी प्रबन्धकारिणीको वै ठकमे सम्मिलतत हौनेके
लिए ३० सितम्बर १९७३ को वाराणसी पघारे थे । ओर अपने साथ उक्त
ग्रन्थके चारों खण्ड ठेते आये थे । अतः १ अक्तूवर १९७३ से १५ अवतुबर १९७३
तक १५ दिन वाराणसीमें ही प्रतिदिन प्रायः तीन समय त्तीन-तीन घण्टे ग्रन्थका
वाचन हुआ । वाचनमें आचायं शास्त्रीके भतिरिक्त सिद्धान्ताचायं श्रद्धेय पण्डित
केलाशचन्द्रजी शास्त्री पुर्वे प्रधानाचायं स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी, डॉक्टर
ज्योतिप्रसादजी लखनऊ और हम सम्मिलित रहते थे । आचायं शास्त्री स्वयं
वाचते थे और हमलोग सुनते थे । यथावसर आवदयकता पड़ने पर सुझाव भी
दे दिये जाते थे । यहु वाचन १५ अक्तूबर १९७३ को समाप्त हुआ और १६
अक्तूबर १९७३ को पग्रन्थका पहला भाग 'तीथेंडूर महावीर और उनकी देशना' '
प्रकाहाना्थ महावीर प्रेसकों दे दिया गया, जो लगभग ९, माहमें छपकर तैयार
हो सका ।
ग्रन्थ-परिचय
इस विशाल एवं असामान्य ग्रन्थका यह संक्षेपमे परिचय दिया जाता है,
जिससे ग्रन्थ कितना महत्वपुणं है गौर लेखकने उसके साथ कितना अमेय परि-
श्रम किया है, यहु सहजम ज्ञात्त हो सकेगा ।
इस ग्रन्थके चार खण्ड ह--१. तीथंङ्कुर महावीर ओर उनको देशना,
१४ : तीर्थकर महावीर भौर उनकी आचार्यपरम्परा
User Reviews
No Reviews | Add Yours...