भारतीय संस्कृति का विकास | Bhartiye Sanskriti Ka Vikash

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Bhartiye Sanskriti Ka Vikash by डॉ. मथुरालाल शर्मा - Dr. Mathuralal Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूगोल तथा विभिन्न जातियों का प्रभाव 9 भाषाओं के प्रदेश । फिर भी संस्कृत के कारण इन दङिणी साषाओं के मूल स्वरूप में कोई श्रन्तर नदीं श्राया । जेते हमारी श्राजकल की हिन्दी मे श्रग्रेली शब्द्‌ भिक गये हैं उसी प्रकार उत्तर भारत के सास्कृतिक सस्पकं के कारण इन चारों भाषाओं में भी संस्कृत के शब्दों ने प्रवेश पाया परन्तु उनकी लिपि व्यवस्था, विभक्तियाँ तथा क्रिया भेद पूववत्‌ बने रहे । | वतमान भाषाय : प्राकृत के मेद उत्तर, मध्यप्रदेश, पूर्व और पश्चिम में सव्र नये-नये होने लगे । इनके भेद सममने के वासते तथा इनके स्वरूपो को यथापूव बनाये रखने के लिये प्राकृत भाषा के भी व्याकरण बनने लगे ! परन्तु काल के प्रवाह कै समान भाषा का प्रवाह भी रोकने से नहीं रकता । इसकी गति स्वामाविक श्र झनिवाय है । एवं प्राकुतें बनती रहीं । इनकी संख्या बढ़ती गई श्रौर रचना कदत रही । परन्तु प्रान्तिक आर प्रादेशिक भेद होते हुए भी प्राकृतं मूल में समान थीं । मददाराज अशोक ने जो राजाज्ञाय जारी की थीं वे शिलाओओं पर झऔर स्तम्भों पर खदौ हुई सारे देश में पेशावर से दक्षिण मैसूर तक तथा सौराष्ट्र से उड़ीसा तक मिली हैं । इनकी भाषा में स्थानीय भेद है परन्तु मुलत: वह एक ही भाषा है । वास्तव में हमारे देश के प्रधिकांड भाग में एक भाषा हमेशा से समझी जाती रही हैं । शाठवीं और नवीं शताब्दियों म रूप श्रौर बदलने लगे । शनेः शनैः ये भाषायें संस्कृत से दूर जाने लगीं ! ये अधिकं विदत किन्तु प्रचित खूप श्रपञ्चंश कहलाने लगे । एक रूप का नाम ब्राचड भी था । झपअंश के भी प्राकृत के समान अनेक रूप थे। इन झपअंशों से ही हमारी वतंमान भाषायं--हिन्दी, बंगला, उद्या, पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती, मराठी आदि--विकसित हुई हैं । मुसलमानों के आक्रमण : सातवीं सदी से सुसन्लमान भारत में आने लगे । झारम्भ में श्ररब लोग यहाँ झाये । ये समुद्र तट के पास-पास नावों द्वारा काठियावाढ़ झौर गुजरात में घोड़े बेचने तथा दूसरा छोटा ब्यापार करने ओर कुछ लोग जादू के खेल दिखाने के लिये श्राया करते थे । झाठवीं शताब्दी के आरम्भ म श्ररब लोगो ने सिन्ध प्रान्त पर हमला किया और वहाँ के ब्राह्मण्‌ नरेश दारके वंश का अन्त करके अपना राज्य स्थापित किया । दशवीं शतान्दी ते प्वेबर की षाटी से तुकं सुखलमानों ने आक्रमण शुरू किये । पदिक श्रदपतगीं, फिर सुष्ुगतीं भौर तदनन्तर महमूद गज्ञनी ने कितने ही हमज्ञे किये । अन्तिम भाक्रमण महमूद गज़ली का सन्‌ १०२४ में हुआ । उसके बाद सुसलमानो के पैर पंजाब म जम रये । महमूद गज्ञनी के बेटे पोते पंजाब के पश्चिमी भाग पर राज्य करते रहे । फिर बारहवीं शताछ्दी के झन्त में शहाबुद्दीन ग़ोरी ने भारत पर सात आक्रमण किये आर अन्त में चौहान सम्राट एथ्वीराज को हराकर हिन्दुओं के साब्राइ्य का अन्त किया. तथा मुखबमालों के साम्राज्य की स्थापना की । सन्‌ १९२०६ में दिल्ली के राजसिंहासन पर प्रथम मुसख




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