श्री अरविन्द का सर्वौग दर्शन | Shree Arvind Ka Sarvagik Darshan
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( शश )
ई । परिवार तथा श्रन्य सामाजिक संस्थाश्रों के बाहर रह कर व्यक्ति में श्रनेक
गुणों का भ्रमाव बना रहता है । श्राध्यार्मिक विकास में, जैसा कि ईसा ने
बतलाया है, दान से समृद्धि, मृत्यु से जीवन श्रौर भ्रात्मत्याग से श्रात्म साक्षात्कार
मिलता है ।
श्रारथिक क्षेत्र में भी श्री श्ररविन्द का संदेश वही सन्तुलन भ्ौर सर्वाग दुष्टि-
कोण लिये है । जहाँ तक मौतिक वस्तुश्रों के वितरण का सम्बन्ध है, जहाँ तक
मानव की श्रावश्यकताश्रों श्ौर श्राराम के साधनों का सम्बन्ध है, वहां तक
श्री भ्ररविन्द पक्के साम्यवादी हैं । वे पूंजीवाद के घोर विरोधी हैं, श्रौर मार्क्स
के साथ यह मानते हैं कि काल का प्रवाह पुजीवादको श्रधिक दिन न टिकने
देगा । परन्तु मौत्तिक स्तर से ऊपर उठकर प्राणात्मक श्रौर मानसिक सम्बन्धो में
साम्यवाद कोई सुलभाव नहीं उपस्थित करता । उसकाक्षेत्र केवल भौतिक स्तर
है। रोटी की समस्या मौतिक स्तर पर श्रत्यघिक महत्वपूर्ण होने पर भी जीवन
की समस्या नहीं है भ्रतः उसको येन केन प्रकारेण नहीं हल किया जा सकता ।
वर्ग संघर्ष पर श्राधारित साम्यवादी साधन मानव के श्राध्यात्मिक विकास में
बाधक हैँ । साम्यवादके भ्राध्यात्मिक रूपान्तर की श्रावश्यकता है।
श्रन्तररष्टरीय राजनैतिक क्षेत्रमे श्री भ्ररविन्द एक विश्वराज्य के जबरदस्त
हामी हैं । यह् विद्वराज्य विद्व के समस्त राष्ट्रों का एक संघ होना चाहिये
जिसमें .सभी की राष्ट्रीय विशेषताश्रों का श्रपना स्थान हो । जिस प्रकार श्रादशचं
राप्ट् वही है, जिसमें व्यक्ति की स्वतन्त्रता श्रौर पूणंता का समाज के विकास श्रौर
संगठन से सामंजस्य हो उसी प्रकार श्रन्तर्राष्ट्रीय समाज श्रथ्वा राष्ट मे प्रत्येक
राष्ट्र की स्वतन्त्रता श्रौर विकास का समस्त मानवता के विकास श्रौर पूर्णता से
सामंजस्य होना चाहिये । विद्व शान्ति की समस्या को सुलभाने में श्री भ्ररविन्द
की दिव्य दृष्टि कठोर यथाथंवाद पर श्राघारित है । सेनाओं में कटौती श्रथवा
निःशस्त्रीकरण कोई स्थायी निदान नहीं है । न ही कुछ दृढ ग्रन्तर्टरीय नियम
ही विशव में स्थायी शान्ति स्थापित कर सकते हैँ । एक स्वेच्छापूणं श्रौर सुदृढ़
विह्व-राष्टर ही एकमात्र निदान है । यह विश्न-राष्टर, जाति, देश, सस्कृति भ्रौर
प्राथिक सुविधाओं के श्राघार पर बने भिन्न-भिन्न स्वतंत्र समुदायों का संगठन होगा
इसमें कुछ बड़े राष्ट्रों. की ठेकेदारी नहीं बल्कि सभी राष्ट्रों को समान श्रधिकार
होगे । इस विश्व-राष्ट् की विद्व सरकार की महत्ता स्थायी रखने के लिये
उसको एक सबल सैन्य दल रखना होगा । राष्ट्र-राष्ट्र में प्रेम नहीं हो सकता ।
जब तक मानव स्वभाव परिवर्तित नहीं होता तब तक जीवन का नियंत्रण दक्ति
द्वारा ही किया जा सकता है । सैनिक, पुलिस, प्रशासन, विधान, न्याय तथा
झाधिक, सामाजिक श्रौर सांस्कृतिक सभी व्यवस्थाश्रों पर श्रन्तर्राष्ट्रीय सरकार का
निपंत्रणा होना चाहिये ।
फरन्तु मानव समाज के विकास में विश्व सरकार की स्थापना कोई श्रन्तिम
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