चतुर्दिक | Chaturdik

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Chaturdik by शिवप्रसाद सिंह - Shivprasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समयामाता जब भी समयामाता का ध्यान भ्राता है वादू श्रलियारसिंह का चेहरा मरी दाखा के भ्रागे नाचने लगता है । समयामाता मेरे परिवार मे इष्टदेवी की तरह पूजिन होती है । म नही जानता कि हि दुप्नो क॑ तैतीस वरोड़ देवताथ्ा मे व किस सष्या को सुगोभित करती हैं. पर बचपन में उनकी पूजा के जो भी श्य देषे है वे उदं सवेसे श्रधिक मायाविनी, रूर पूजालोलुप प्रौर श्राथु त्तापिणी देवी के रूप में नि सदेहू बहुत ही महत््वपूण स्यान देने की सिफारिश करते हैं । वप मे एक निश्चित दिन पर समयामाता की पूजा होती । गोवर से 'लिप श्रागन मे बीचोवीच भ्राटे से चौका पूरा जाता । चौके वे वीच खेतों से छुने हुए गोबर के कड़े सुलगा दिये जाते । उनकी घुमली श्राग पर रखा मिट्टी का खप्पर दूध से भर दिया जाता । भ्राग के दक्षिण पाइव मे पड़ित श्र भ्राग के सामने पूवाभिमुख बादू भ्लियारसिह । श्रॉगन में वठी स्त्रिया गीत गाती । खप्पर के सिरे पर बंँधी वनर के फूलों की माला लपटा मे मुलसने लगनी । दूध उफ्नाता । दरवाज़े पर बजते नगाड़े की भावाज़ श्रारोह लेती कि श्रलियार सिंह होना हाप हिला हिलाकर ध्रमुवाने, दहाडने गरजने लगते । वे हवन की श्राग हाथ मं उन तेते-“डाल घी, डाल घी, बोल समयामाता की ज--बोल बोल समयामाता की ज... पडितजी पल्लव स उठाया थी श्रलियार सिंह के हाय मे रखी श्राग में डालने लगते । देवी साक्षात हवन माँग रही है । दूध उफ नाता । ्रलियार सिंह जलते दूध मे हाथ डालकर फेत हलकोरकर सामने ुक्े पुजारी के सिर पर जार से श्राघात वरते-- जो कल्यान होई । जरा खुल के महरानी ई क्या गरदन दवाय के बोल रही हो देवी जव हियस खोल के पूजा ले रही हा तो हिंयरा सोल के रच्छपाल भी बोलो । हुरवू सांवा समयामाता को छेतते । हियरा सोल के पूजा कहाँ मिली सदक । समयामाता शिकायत करती-- न तो श्रय वह वढिया व हावर (पोली धौती) समयामाता / ११




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