भाषण संग्रह - भाग 1 | Bhashan Sangrah - Bhag 1

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Bhashan Sangrah -  Bhag 1 by श्री ज्ञान सुन्दर जी महाराज - Shree Gyan Sundar Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९९) कार्यकी सिद्धि उद्यम पुच्या्थं करनेते ही षती द नकिं केवल भनौरथ यानि ठम्वी चौड़ी संखसलीवाली वाते करनेसे जैसे सिंह एक बनका राजा महा प्राक्रमी होता दै पतु चोर उद्यम फ़िये सोते हुवे के मुखमें यूग कमी प्रवेश नहीं होता है श्गर मनुष्य बिचारे हुवे कार्यको प्राग्भ कर घीरे घीरे करे हो भी कार्य हो सकता है जेसे:--- घन संग्रह धर पन्थ चलन, गिरि पर चदत सुजान । धीरे धीरे ह्येत सवी, हान ध्यान वटुमान ॥ शनैः पन्या; शने; कन्थाः शनैः पषैत लङ्गनम्‌ 1 शतर्विद्ा शृनैवित पथवैतानि शनैः शनैः ॥ पनथका चलना, कथाका कदना पर्वता उलद्भना विद्याभ्यास का करना द्रन्योपार्जन फरना यद सत्र धीरे धीरे ही हुवा करता ६ बास्ते धीरे धीरे उद्योग ऋरनेसे मनुष्य उन्नतिकों प्राप्त दो सकते है नीतिकागेंने मनुप्योंका लक्षदी उद्योग फरना बतलाया है श्रशवस्य लक्तणं वेगा, भदो पातङ्क लक्षणम्‌ । चाहुये लक्षण नारयां, उद्योग: पुरुप लक्षण ॥ श्खका लक्षण चेगसे चलने का दै, इस्तीका लक्षण पैर्यता के साथ मंद चलनेका हि खरियोंका लक्षण चाहुर्पपनेका है श्मौर पुरु- पॉंफा लकाण उद्योग करनेका दै ऐसी जलगतमें कौनसी वस्तु हैं कि उद्योग करनेसे प्राप्त न हो के श्रर्यान्‌ उ्योगसे द्विलव वही यस्तु प्राप्त दो सफती दै में एक घालक-हूं आदा कदना नहीं चाहता हूं ल्यपि इमाग दिल रुक नहीं सकता है.




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