जैन हितबोध | Jain Hitabodh

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Book Image : जैन हितबोध  - Jain Hitabodh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र अथ मंगलाचरणम्‌. श्री वीर सद्भाव स्वति ) धीर जीनेशवर सादि घणग्यो, अरेन करं दुं जग धेरि. दे देक, द्या .चारिथी '; स्नान करीने, संतोप चिवः धारयेः किक तिलक अति चौ फरीने, भावना.पविन आशरयेर. चीर. भक्ति केसर कीच करीने) श्रद्धा चंदन भेठीएर; ह सुगंधी” सद द्रव्य मेठीने, नव ब्रह्मांग” जिन अचीएरे- वीर. २ संमा सुगंधि, सुमन संदामें, हुच्िघ धर्म सोम” युगपरेे। ` ध्यान अभिनवः ° युपण सा, अची अ घर्णु दर्पियेरे- वीर, अटि मदना त्याग करण सप्‌, अष्ट मंगक्आगे थापीएरे; आन. हुताश्चन ^ जनित श्ुमाशषय, कृष्णार ° उलेबीररे, वीर, ४ शुद्ध अध्यात्म ज्ञान चददनिवी,' ** प्राग्‌ धमे ^ * रकण उतारीषे योग पवतयास करता, नीरानना' ' विधे पूरी वीर. ९ आतम अनुभव ज्ञान स्वरुपी, मंगल दीप मजाली एर योग तरफ़ शुम दत्य करता, सदन रलत्रयीः › पमीएरे. बीर, १ भरः, २ व्ल ३ मनोहरः ४ पव्ि्.५-रस, धोठ ६ उत्तम ७ ब्रह्मच रुषं ८ पृप्पमारा, ९ चस युग ,१० अपूव ९१ अभि १२ उत्तमःधूप १३ अग्नि १३ पूरक अश्चुद्ध प्र १५ आसती; २५ मन पचन अर कायानी सस्ति १६ प्म्यम्‌ देन, ज्ञान अर्‌ चारः




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