जैन सिध्दान्त भास्कर : भाग 10 | Jain-sidhant-bhaskar Bhag-10
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
ए. एन. उपाध्याय - A. N. Upadhyay,
कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain,
के० भुजबली शास्त्री - K. Bhujwali Shastri,
हीरालाल जैन - Heeralal Jain
कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain,
के० भुजबली शास्त्री - K. Bhujwali Shastri,
हीरालाल जैन - Heeralal Jain
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
205
श्रेणी :
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ए. एन. उपाध्याय - A. N. Upadhyay
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कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain
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के० भुजबली शास्त्री - K. Bhujwali Shastri
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हीरालाल जैन - Heeralal Jain
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)किरण १3 पाइपंदेवकृत 'सगीतसमयसार' ११
स्थान पर मम द्रभाकू होना चाहिए। क्योंकि इस राग की व्याहिम द्व सप्तक में किस स्वर तक
शरीर तार सप्तक के किस स्वर तक होती है, इसका स्पष्टीकरण ऊपर के दो छोको में है।
भापाद्धराग
१ बेनाउली (वेलावली)
कुकुमप्रमया भाषा या प्रोक्ता भोगवधिनी |
वेलाउली तदग स्यात् परिूरसमस्वरा ॥३४॥
यैपताशमहन्यासा धतारा मन्द्रमध्यमा 1
पड्जेन कम्पिता सेय विप्रलम्मे नियुज्यते ॥२५॥
समीतरलाकर में भी बतलाया है कि “कऊुभ राग” में से निकली हुई “भोगवर्षिनी
भाषा मे से बेलावली उदत्न हई है--
तन्ना पेलायली तारधा गम द्रा समम्बरा 1
धायन्ताशा फस्पयदना पिप्रलम्मे दरिपिया ॥ २ ११५.
त म्ण तो पक दी है, मातर म द्रव्याप्ति कं सय म॑ मृतमेद् है ।
१ सायरी (श्रामायरी)
ककुमोत्था रग छग धाता मभ्यग्रहाशफा (1) (भारा च मग)
गताग स्वरपपट्जा च पचमेन विजिता ।
मनर मां सायरी जेया करम्या ऊर्णो रे ॥३९॥ य समयसार्
रलाकरें--रगति भाषा में से --
तद्धवाऽसागरी धाता गनारा मद्रमम्यमा।
भम्र शा म्बरपपड्जा फर्णे पचमोभ्मिना ॥
दोनों के ललण एक ही है । “प्यम्रहश्का गे मभ्य, को श्रे म यमस्वर
सममना चादि पयोग भी इसी श्रमे दै 1
१२ देगाग्य
गाधारपवमा जाता ऋषभे विवर्निता ।
अहशन्यामसम्पधगाधाय च समध्वर ॥
निषालमन्द्रा गाधार्एुरितेने पियनिता 1
पाटय यरि रागाग चन पूरा च ण्ये |
टशाख्य स समयमार
(त में (्गापपचम् › ग्राम रुगे चि देशागय का स्वरूप इस प्रसर
या है--
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