हिन्दी पत्रकारिता राजस्थानी आयोजन की कृती भूमिका | Hindi Patrakarita Rajasthani Aayojan Ki Kriti Bhumika

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Hindi Patrakarita Rajasthani Aayojan Ki Kriti Bhumika by कृष्णविहारी मिश्र - Krishnavihari Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साधक नहीं थे, पर उनके उन्नत विवेक और व्यावहारिक समझ का ही प्रमाण है कि ' वेंकटे श्वर समाचार ' के सम्पादन के लिये उन्होंने पं. रुद्रदत शर्मा, पं. लज्जाराम शर्मा और पं. अमृतलाल चक्रवर्ती जैसे अपने समय के पांक्तेय पुरुषों को आमंत्रित किया था। गखेमराज बजाज के कृती उद्योग के वाद वम्बरई म्र ही हनुमान प्रसाद पोर ने ' कल्याण ' का प्रकाशन शुरू किया था, पर गोरखपुर पहुंचकर ' कल्याण' की यात्रा जब ' गीता प्रेस ' से जुडी तो उसकी भूमिका समृद्धि के शिखर पर पहुंच गयी । ' वैकटेश्वर प्रस ' ओर गीता प्रेस' का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अवटदान राजस्थानी व्यवसाय वृद्धि के साथ जुड़े आदर्श का विधायक परिणाम था, जिसका लाभ वर्ग -विशंष को नहीं, समग्र देश को मिंला। पराधीन देश के पत्रकारिता-परिद्श्य पर ट्रप्रिपात करने पर जो चित्र सामने उभरता है उससे स्पष्ट हो जाता है कि विभिन्न प्रयोजनों से पत्रकारिता “को, सबल प्रभावी माध्यम के रूप में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने अपनाया । राजस्थानी उद्योग से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादकों में विभिन्न क्षेत्र विभाग के लोग थे । महात्मा गांधी, हीरालाल शास्त्री, हरिभाऊ उपाध्याय भर जयनारायण व्यास भी थ ओर रुद्रदत्त शर्मा, अमृतलाल चक्रवर्ती. दुर्गाप्रसाद मिश्र, ज्लावरमह् शर्मा. सत्यदेव विद्यालंकार, रामनाथ ' सुमन ' शिवपूजन सहाय जैस कृती सम्पादक तथा गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी ओर चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जैस मनीषी भी थे। सबका लक्ष्य एक ही था, जातीय चेतना करा बहुमुखी विकास ओर देश का समग्र अभ्युत्थान । नुस बड़े लक्ष्य तक पहुंचने के तिय व्यक्ति ओग क्रारी वर्ग-ब्रिरादरी का संस्कार - यन्नयन वरिचार काणक कोण था। उम चिन्ताके आग्रह से पूर्व स्वातंत्रय-काल में विभिन्न वर्ग बिरादरी और भिन्न-भिन्न धर्म पंथों की ओर से न केवल राजस्थान बल्कि देश कै उन उन स्थानों से, जहां राजस्थानी समृह प्रवास कर रहा था, अनेक पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। उनका ऊपरो उद्देश्य वर्ग विशेष तक सीमित था. पर जातीय आधार- शाधन भर चतना -विकास की दृष्टि से वह/एक बड़ी रचनात्मक प्रचेष्टा थी । मारवाड़ी समाज द्वारा कुछ ऐसी भी पत्रिकायें प्रकाशित हई, जिनके नाम से उनके महत्‌ लक्षण के बाएं में सहज ही भ्रम होता है । रूदमल गोयनका के उद्योग से कलकत्ता से पं. दुर्गाप्रसाद मिश्र के सम्पादन में प्रकाशित * मारवाड़ी बंधु' तथा अकोला से बृजलाल वियाणी के उद्याग स मत्यदेव विद्यालंकार के सम्पादन मेँ प्रकाशित ' राजस्थान ' ओर आरा स शिचपृजन महाय के सम्पादन में प्रकाशित ' मारवाड़ी सुधार ' ऐसी ही पत्रिकायें थीं । स्वदेशी- आंदोलन - काल में प्रकाशित ' मारवाड़ी-बंधु' की भूमिका देश-बंधु की प्रभावी भूमिका थी और ' मारवाड़ी सुधार ' तथा ' राजस्थान ' की दृष्टि गांधी युग की जातीय संवेदना पर केन्द्रित थी । यह भी एक महत्वपूर्ण तथ्य ध्यातव्य है कि इन पत्रिकाओं का सम्पादन हन्दी के शीर्पम्थ संपादक कर रहे थे । जातिगत और वर्गगत कुसंस्कार के मोचन का एक प्रधान लक्ष्य होते हुए उन पत्रिकाओं का बड़ा लक्ष्य था, साम्राज्यशाही-अभिशाप से आक्रान्त देश की पराधीन अस्मिता के उद्धार को चेतना जगाना और मनुष्य को उन्नत करने वाले विचार को ओर उस प्रवृत्त करना। सन्‌ १९३६ में कलकत्ता से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ' मारवाड़ी ' का विज्ञप्त उद्देश्य था ' मारवाड़ी समाज से सम्बन्ध रखने वाले सामाजिक, ४. हिन्दी पत्रकारिता : राजस्थानी आयोजन की कृती भूमिका




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