सूरदास और उनका भ्रमणजीत | Surdass Aur Unka Bhramargeet
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
341
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवन-परिचय श्रौर भ्रमरगौत-मूल्याक्न १६
देवीप्रसाद भ्रादि “साहित्य सहरी ' के इसी पद को ठीव मानवर सूर को चन्दवरदाई का
वप्त मानते है । भागरां वा 'एजुवेदनल गजट' तथा 'कल्याण' का “योगाँव' भी
इसी पे' पक्ष में दुष्टिगत हुभा है 1 प्राप्त सर्य पे भ्राधार पर चन्द्वरदाई भाट ठहरते
है भरत यदि सूरदास इनके वशज थे तो वे जाति से भाट हुए । किन्तु यह मत हमें
श्रामब प्रतीत होता है । गोस्वामी बिट्रलनाथ जी के पुत्र गोस्वामी यदुनाय जी नें
बिद्वलनाथ जी के ही सेवन श्रीनाय भट्ट ने तथा इन्ही वे समवालीन कवि श्री प्राय
नाथ ने सूर को स्पप्ट रूप से श्राह्मण लिसा है। ये सूरदास के समकालीन ये!
शते इनकी बातों पर उपरममुक्त विद्वानों से झधिव' विश्वास करना न्यायसगत्त तथा
उचित है भत निश्चित है कि सूरदास जी चन्दवरदाई के वशज नहीं थे । चस्दवरदाई
भाट थे भर सूर म्राह्मण जाति के थे ।
नेत्रहीनता
“इसमें तो श्रव कोई सन्देह ही नही है बि सूरदास जी ने्रविहीन थे । वाद-
विवाद का विपय तो यह् वना हुमा है कि व जन्म से ही भन्पे थे श्रथवा उनके नेत्रो
की ज्योति घाद मे किसी कारणवश चली गई थी । श्रधिकाँश विद्वान झन्त'साध्य एवं
बाह्यसाद्य के श्राधार पर इन्दे जन्माध ही वताते है । धी मुन्सीराम शर्मा,
प० द्वारिवाप्रसाद पारीस तथा डं ° नन्ददुलारे वाजपेयी उनके समकालीन कवियो जैस
श्री नाय भद, प्राणनाय तथा हरिराम जी कै श्रनेक कथन उद्धृत फर इनका जन्माध
होना ही भमाणिति करते है । जो विद्वान जन्माध् होने मे सदेह करते ह उनका सवम
प्रबल तक यह है कि एक जन्म से श्रधा इसे प्रवारके पूरणं, सृष््म, स्वाभाधिक एव
मनोरम वर्णानि नही कर सकता । यह तकं हमे भी कुछ कम प्रभावशाली तथा तकं-
सगतं प्रतीत नही होता 1 सूरदास जी दिव्यदृष्टि सम्पन्न ये--टीक है होगे। किन्तु,
अपनी दिव्य दृष्टि से ही इतने सूक्ष्म निरीक्षण कर किये, यह् वात हमारी सममे
नही श्राती } हाँ, झ्रभी हाल मे ही प्रकाशित “सूर-निणय' में सूरदास के कुछ ऐसे पद
सोजबर उदुघृत किये गये हैं जो उनके जन्म से ही नेत्रविहीन होने का स्पप्ट उल्लेख
वरते हैं । यदि ये पद पूर्ण प्रामाणिक सिद्ध हो जायें तो यह विवाद सेव के लिए
मिट जाय ॥
सक्षिप्त जीवन कम तथा देहावसान
अब तक की समस्त खोजो के झाधार पर यह कहां जा सबता है कि सूरदास
लगभग छ वर्ष वी श्रायु तक झपने माता-पिता के साथ रहे तथा तत्पश्चातु घर छोड
कर चले गये । अपने जन्म स्यान से चार कोस दूर जाकर वे एक ग्राम मे रहने लगे
अर श्रट्टारह वर्ष की भायु तक वही रहे । यहाँ इस काल मे वे सच्चा भविष्य वाणी
करने वाले के रूप म नहुत प्रसिद्ध हो गये थे । यहाँ उनके वई सेवक भी यन गये तथा
धन भी पर्याप्त अजित किया । इसी बीच उन्होंने सगीत-वला वां भी अच्छा अझम्यास
कर लिया ।
किन्तु दान्ति का स्रोजी झशान्ति की दलदल मे फेस यया ! धर से नित्त ये
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