आदमी | Aadami
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“आदमी ~ दर - आदमी : १६
धन्यवाद देते थे । कभी-कभी कुछ कटिनादर्या श्रवद्य श्रायीं 1 कभी-कभी
खाना भी नहीं मिला । एक वार तो ईरान में तीस घंटे तक विना
भोजन के रहना पड़ा, पर यह सारी मुसीवते नगण्य थीं । श्रमर थोड़ा
बहुत कष्ट न श्राये तो यात्रा का भ्रानन्दही क्या? श्रगर कष्ट से ही डर
होता तो विश्व-यात्रा पर निकलते ही क्यों ह परन्तु विश्व-्याशा की
कल्पना करते हुए कठिनाइयों श्रौर कष्टो के वारे मे जो कल्पना होती
थी वसी कठिनाइयां नहीं श्रायीं । त्रसलियत तो यह है कि जब कठिनाई
को स्वीकर करने फे लिए मन तयारी जाये तव कठिनाई कठिन नहीं
रह जाती है । 5
इस प्रकार भारत का यह मनस्वी संत पुरी विद्व-यात्रामे हमारे
साथ रहा । शाकाहारी होने के कारण भी कुछ दिवकतें श्रायी ।
कुछ स्थान तो ऐसे मिले जहाँ पर लोग यह कल्पना भी नहीं कर सकते
कि बिना मांस के भी जिन्दा रहा जा सकता है । ईरान में वो लोग
वड़े ताज्जुव के साथ हमे कहा करते थे कि दुमा, गत्ला-व-गत्ला
खुर्दन ।' यानी श्राप श्रनाज को श्रनाज के साथ कंसे खाते हैं ? पर जसा
कि विनोवा ने कहा था यह शाकाहार श्रीर पैसा-मुक्ति निश्चय ही
हमारे लिए गदा भ्ौर चक्र ही साबित हुए ।
उलागर सिह विललगा
3
१ जून, १६६३ को हम दिल्ली से तरा पर रवाना हुए
झौर ३ जुलाई को हमने भारत की सरहद छोड़कर पारिस्तान में प्रयेश
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