जेठवे रा सोरठा | Jethve Ra Sortha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जेठवे रा सोरठा  - Jethve Ra Sortha

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नारायणसिंह भाटी - Narayan Singh Bhati

Add Infomation AboutNarayan Singh Bhati

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ जद दा गोर्ठा 2. (है ही ग्रहण करती भाई दै । कयोमि उसे इन प्रेगन्गा बायीं मे निर्गा की प्रक्रिया का पूरा शान गद्दी । इस तरदू को गायामों में कौनसा श्ंध प्रक्षिपा है यदू मासूम फरगा थी शरव्यन्त कटिन दै । शारत्रगम्मत काथ्यों फी प्रागाणिकता निदितित करते गथ परतिदाग से चरत सी सहाया मित जती षट, पर जैसा कि पढ़ते मादा था छुका ध, दल गायाध्रो फी पृष्ट-मूमिमे तो कैनिदधािक कथाभी करुणो म प्रनन्िति ग्नी प्रर उनके षन मिश्र स्मो फो युगो मे मान्यता निरती धाद गेध्या-उजछी फी पया फो ष्ठी ने मीनिए-- दौः गम्वन्ष गे प्रोदी-वषी पटना को सेकर कई सतभेद प्रचलित दै) य तका कि कु छग उनी शीर णया का दुबारा सिछत होना ही गद्दी मानते, जद दगरी प्रौरदोगों कै कह मार्‌ मिलते की यात भी प्रचलित है श्रीर श्रेत में जेंदया गदल लक जाकर उनी की धाप देनी है, ऐसा भी अधिकाण लोग सानतें हैं । सहन गे ससलय यठ कि प्रभणित जग-श्रुतियों के श्राधार पर काद्य की प्रामानििषता परर निदिषग विवार प्रद नशी फर्‌ गवते । गम्भीरलापूरयेकः विलार्‌ किया जायतौ यद भौ प्रात्रप्यवः गहीं जान पढ़ता की ऊगठी ने जेठया के विरमे गृद्धगोग्टे बी षागे । पटा सके कि पहलेपल जिस यावि ने गाथा से प्रसुभूति ग्द्रण थी ही उसने भी शायद ०-४ सोरदे ही षट धर कालान्तर गे भायुक जननसबियों से उनयी सरधा में मौका पातिर यृद्धि यार दी हो । पर इतना सो निश्यित है कि जो सोरठे श्रतुभूति को गहराई से सदुभूत टुए हैं थे ही समय की दूरी थी सय कार से है प्रौग श्राज हम सका पहुँच पायें हैं । दिथिल कभिव्यक्ति याला साध्य बाभी जनता में बढ़ों थे जीवित नट्ी रह सबता । यठ सबुछ होने हुए भी सुक्तकों से निशित प्रेसन्या वाधो मे वृद्ध वर्तका ध्यान रखना आयय्यक हो जाता है । नागजी, याघमी, बीजसा, गोगट, उमरी श्रादि सी प्रेम-गाधाएँ दोदोन्सोरठों में निर्शित हुई हैं । प्रत्येक छग्द में प्रेमी था प्रेमिया का प्राय गम मिलता है । जेठया के गोध सो प्रत्येक रोरटे के प्रन गे जेयया ( या मेहउत ) घव्द आया है । लल जेठया मे गाति म प्रवि सोरठी को सहज ही मे दंग प्रेम-याया में साथ जोड़ा ना सकता है, पर यठाँ सुख मलर्ला श्रयव्य प्रमक्षिल द । उक्त से था नाय था करा सास मेठ-जठवा है । घ्र बिसी जेटये थे नाम सा प्रचलित सोरठा एययव इस सथा माय नदरी मोष सेना चादिषु जेगे एक सोरठा हालागण नेठवा के नाम में भी प्रमणि है जिसया प्राय लोग जेठया मे सोरठी में साय निया मेत ~




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now