अष्टसहस्त्री | Ashtsahastri

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Ashtsahastri by कोठारी मोतीचंद जैन - Kothari Motichand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना नम श्री स्याहाद विद्यापतये यायश्चास्व प्रमाणभूत शस्त्र है इतना ही नही इतर सिद्धात व्याकरण साहित्य चरणानुयोग करणानुयोय प्रथमानुयोग भादि अ्रथोमे प्रामाणिकता को सिद्ध करने के लिए साधन हैं । द्वादशाग वाणी में दुष्टिवाद नामक जो भ्रन्तिमश्रग है उससे प्रतत यह यायशास्त्र है। यायशास्त्र के द्वारा सिद्धात समथधित विषया को कसोटी म केसकर सिद्ध किया जाता है। सिद्धात प्रतिपादित तत्त्वो में प्रासाणिकता किस प्रकार है इसे याय शास्त्र प्रतिपादन करतारहै। वस्तु का सर्वाक्षस सर्वाग सै यथाथ दशन यायशास्त्र के द्वारा होता है। यायशास्त्र की श्राधार शिला स्याद्वाद या झनेकात है ती प्रमाण बे नय उसके दा पख हैं । नय प्रमाणरूपी पण्ा को घारण कर स्याद्वाद यथन्छ सब्र जल स्थल भ्राकादश में श्रमण कर सकता है । उसे कोई भी किसी भी क्षत्र मे रोकने के लिए समथ नही है । उसकी गति निर्बाध है उसकी गति श्रातक रहित वेगवती है । उसमे उपरोध करने वाली कार्ट शक्ति ससार में नहीं है । ससार म युक्ति प्रयुक्त करने की योग्यता वाले हर विषय का विवादास्पद बना सकते है । उसे उस कथन को एवं युक्ति का तक की कसाटी मे कसकर देखना होगा कि वह सम्यक है या मिथ्या हैँ युक्ति ध्ौर शास्त्र सं अविरोध जो वचन है वहं सम्यक तक्र है। तक म॑ तक भी होता है कुतक भी होता है। परन्तु सुतक ग्राह्म है उपादय है परतु कुतक त्याज्य है निषध्य है सुतक या तक के द्वारा द्रव्य की प्रतिष्ठा होती है द्रव्य म द्र यत्व की सिद्धि गुण में गुणत्व की सिद्धि पर्यायमे उत्पाद -ययकी सिद्धि श्रादि सभी तक पूण दष्टि से होती है श्रनुदिन के बोलन वाले वचनों में भी याय का पुट लगना चाहिये भ्र याय पूण वचनो से विवाद कलह सघष उत्पन्न हाते हैं । इसलिए युक्ति शास्त्र से अविरोध वचनो से पूण याय पथ से चलने को ही बोलने क लिए मनुष्य को सीखना चाहिये । भगवान समतभद्र ने भ्रहत्परमेदवर भगवान महावीर की स्तुति करते हुए श्राप्तमीमासा मे लिखा है कि-- स त्वमेवासि निर्वोधो युक्तिशास्त्राविरोधिवाक । प्रबिरोधो यदिष्ट ते प्रसिद्धेन न बायध्त ॥ है भगवन्‌ ! भाप ही युक्ति भौर श्रागम के झविरोधी वचन को बोलते है भ्रतएव निर्दोष हैं । प्रापके बोलने चलने मेजो भ्विरोध है. वह प्रत्यक्षादि प्रमाणो से बाधित नही है भर्थात स्पष्टतया 14




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