पउमसिरिचरिउ | Paumasirichariu

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Paumasirichariu by राजेन्द्र सिंह - Rajendra Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किंचित्‌ प्रास्ताबिक १ पछीना १५-२० वर्षना गाामां ए विषय ऊपर लखनारा आपणा देशना ॐ, शुर, हॉ. बेनर्जी-शाखत्री विगेरे विद्वानोए पण ए ज धारणानो पुनरुष्ार कर्यो हतो. ११ अप्थंश भाषाना विशिष्ट अध्ययन अने अन्देषणनी आवदहयकता तेम ज उपयोगिता, भारतीयभाषाभिज्ञ युरोषीय विद्रानोने प्रारंमथी ज सारी पेठे जणा दती. आयैपरिबारनी प्रवर्तमानं भारतीय भाषाओना विकासक्रमनी, तुखनास्मक दृष्टिये पयो. लोचना करवा मादे, ए माषाना इतिहास, सा्िय अने खरूपने समजवानी अनिवाये जरूर छागी हती. वर्तमान देशभाषाओना प्रबाहनो उद्गम शोधवा जनाराओने जणायुं के विक्रमना १ १ मा शतक पछी ज, ते ते भाषा ओनी आरंमिक त्ुटक रूपरेखा्जो नजरे पडवा छागे छ, अने ते पीना ज उत्तरोत्तर काठमां 'थीमे धीमे तेमनो विकास थतो स्पष्ट देखाय छे. एथी पूर्वना समयमा तो, अपश्रश्न संज्ञाधारकते भाषानी विशाघ्ट धारा वहेती देवाय छे जनु चिस्तन व्याक्ररण हेमचन्द्राचायैना उक्त प्राकृत व्याकरणमां निवद्ध थणलुं छे. एथी ए वस्तु स्वतःसिद्ध थएली जणाई के वर्तमान भारतीय भाषाओना प्रवाहनु उद्गम स्थान, अपभध्रंदानी धारामां अन्तर्निहित थएलुं छे. एटढे, ए मादे अपभंश भाषानी साहित्यिक सामग्री शोधवा अने मेकववानीं सत्कंठ।, ए विपयना अभ्यासियोने थाय ए तदन खाभाविक हतु. १२ अध्यापक पिश्चल (सन्‌ १८७७ मां ) उक्त हेमचन्द्र चायेना प्राषत व्याक- रणनी सुसंपादित आवृत्ति प्रकट कयां पष्ठी, पोता समग्र रक्ष्य प्राकृतभाषालु एक प्रमाणभूत अने परिपूर्ण व्याकरण ठछखवा तरफ दोरु. तेमना समय सुधीमां ज्ञात अने प्रकारित थएछा विश्चाढ प्राकृत साहियना संकडों प्रन्थो अने हजारो उलेखोनुं अथाग दोहन करी, २५-३० वपैना सदीयं परिश्रम पष्ठी, तेमणे ए व्याकरण पूर्ण कर्युजे सन्‌ १९०० मां जर्मनीना स्टासबुगे नगरमांथी प्रकट थयुं. ए न्याकरणना उपोद्‌घातात्मक प्रकरणोमां मागधी, महाराष्री, घोरसेनी आदि घधी प्राकृत भाषाओनुं स्वरूप लेग्वन करती वखते, क्रमप्राप्त अपभ्रंश माषाना खरूपं पण तेमणे संक्षिप्त परंतु सारभूत, सुन्दर निरूपण कयुं. ए निरूपणमां, अपभ्रंश भापाना शानमाटे जेटली साहिसिक सामग्री तेमने उपलब्ध थई हती तेनी टूंक यादी पण तेमणे एक प्रकरणमां आपी छे. ए यादी प्रमणे तेमनी पासे, हेमचन्द्रना प्रात व्याकरण- गत अपश्च प्रकरणमां उदाहरण तरीके उद्धृत करेला पदयो उपरान्त, सरस्वती कण्ठामरणमां मढ़ेलां थोडांक अपभ्रेश उद्धरणो, चिक्रमोर्वशीयमां उपलब्ध अपर झनी संवादास्मक थोडीक गीतिकाओ, पिंगठछन्दःसूत्र अने प्राकृतपिंगछमां उद्धृत भपलां थोडांक अपभ्रंश पथ्यो, तेस ज “ध्वन्याडोक,” 'वेताटपंचविंशति,” 'झुकशश- स -------~------ ---------- ---------~ ~ ~ ~~ ~ “--~-~ ~~ ---+---~ १ जुओ, डा° गुणे लिखित, “एन एन्टोडकशरन टु कम्पेरेटिव फाइलोलॉजी' प. १९६. २४). ए. पी. मेनञ-स्लाली कृत इवोल्युशन ओं मामनी' ए. ९३.




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