रत्नकारणड श्रावकाचार | Ratnkarand Shravkachar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
808
श्रेणी :
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No Information available about सदासुखदासजी काशलीवाल - Sadasukhdasji Kaashlival
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हुआ है इस विषयक लिए विवेचक अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हैं
जिनमें गृस्थ और साधघुओंके झाचार-विचारका विवेचन पाया
जाता है । प्रस्तुत प्रन्थभी श्री आचार मागेसे सम्बन्ध रखता है
जिसको श्री पं० जुगलकिशोरज़ी मुख्तार साहबके शब्दोंमें सभी
चीनधर्मशास्त्र अथवा रट्नकरणडश्रावकाचार कहते है प्रन्थमे जैन
श्रावकके त्राचारोंका सांगोपाज्ञ कथन दिया हुआ है यद पन्थ
उपलब्ध श्रावकाचारोंमें सबसे प्राचीन है, रचना संचिप्र सरल
तथा सूत्रारमक होते हुम गम्भीर अथकी प्रतिपादक है उसका
एक एक वाक्य जंचा तुला दै प्रथमे लक्षणोके अथंकी अभि-
न्यं जकता, च्राप्त-आगम ओर गुरुके लक्रणोकी परिभाषाः त्था
रत्नत्रय द्वादश ब्रतों और प्रतिमाओंके लक्षण अर सम्यग्दशन-
की महन्ताका स्पष्ट कथन दिया हुआ है साथही जेनतीथेकर
केवलोकी अनीहित धमंदेशनाको सुन्दर उदाइरण द्वारा पुष्ठ किया
गया है और बतलाया है कि संगीतज्ञकें हस्त स्पशंसे वजने
वाला मृदङ्ग क्या रितल्पीके कर स्पशेकी अपेक्षा रखता है,
नदीं रखता, इसी तरह बीवराग श्राप्तकी देशना सावं जनके हित-
के लिए भव्योंके पुर्योद्यसे विना किसी इच्छा के होती हैं ।
्न्थमें वाक्य-विन्यास सुन्दर दँ श्रौर बे नेक उत्तम
सक्ति्यो तथा अनुप्रास श्रादिकी दिव्यद्चरासे %ोत-प्रोत हैं ।
विवेचन शैली सरल श्यौर श्रति मधुर दै । परथमे दाशेनिकताका
पद् पद् पर 'अझनूभव होते हुए भी उसमें दाशेनिक भ्रन्थों जेसी
जटिलता एवं दुरूहा नी हे श्रौर न विषारोमें कहीं संकीणं-
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