जैन भारती | Jain Bharati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
222
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)9 जेन-मारती &
्गलाद्रश् ।
कारके आरम्भे भगवानकी जय वोरखिये,
अन्तःकरणके द कपाटोंको सदज ही खोखियि ।
प्रत्येक हृदयोंमें सतत जगदीदा ही रहने लगें,
उनके लिये सद्धक्तिकी नदियां सरस बहने लगें।
शाख्र
जिस सांद्रतमपर सूथंदाशिकी भी नहीं 'चठती मती,
हे शारदे ! पलमसात्रमें तू ही उसे संहारती । '
जिनराज-निम॑ल-मृदु सरोवरकी अरौकिक पदिनी,
होता न किसका वित्तदर्षित देख तव शोभा घनी
युर
जो साधु सदपदेश रूपी मेव घरसाते यहाँ ,
जो भव्य रूपी चातकोंको तुष्ट करते ह यदा ।
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