चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रन्थ | Chandabai Abhinandan Granth

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Chandabai Abhinandan Granth  by श्रीमती सुशीला सुलतानसिंह जैन - Smt. Susheela Sulataansingh Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकादाकतौय (१) झमिनन्दन (२) जौन दर्शन (३) साहित्य भौर कला (४) इतिहास भ्रौर पुरातत्त्व (५) विहार (६) समाज-सेवा (७) नवनिर्माण (८) विव सस्कृति श्रौर नारी यह रूपरेखा मुद्रितकर, इसके श्रन्तगेत विषयो को निर्धारित कर विद्वानो को मजी गयी । कुछ लेख भ्राये । इसी सिलसिले मे बहुत से लेख खो दिये गये । इस कायं से सम्पादको की निजी व्यरतताश्नो ने उन्हें खीचा तो भी जो कुचं उन्होने किया, वह्‌ स्तुत्य है । ग्रन्थ के प्रकाशन में देरी हुई । भ्रनेक स्थलों से इसका कारण पूछा गया । हमने श्रपनी विवदता प्रकट की । फिर हमको इससे धैर्य श्रौर चेतना मिली भ्रौर हम “करेगे या छोड़ देंगे” का झदम्य सकल्प कर इस काये मं जुट पड । विद्वानों की राय से सम्पादक-मण्डल मं केवलं महिलाएं ही रखी गयी जो मान्य रूप में ग्रन्थ की श्रन्तिम सम्पादिका रही । इस मडल ने सारे प्राप्त प्रौर भ्नूदित्त लेखो की रूपरेखा सजायी जिससे किसी प्रकार की ऋटि न रहने पावे । पीछे से कुछ लेख भी भाये । सभी गणमान्य सउ्जनों ने अपनी श्रद्धाजलियाँ भेजी । अर्थ के सभी विभाग इन उपयोगी सामग्रियों से पुर्णता का दावा करने लगे । श्रीर अपने परिवाित श्रौर परिण्छृतं रूप मं प्रन्थ सितम्बर १६५३ मे पटने मे छुपने गया 1 तत्परता मे जो कच्छ सुन्दर असुन्दर बनं पडा वह श्रापके सामने है । सभी सहायता प्रदान करनेवाले साधुवादाहं हं 1 एक लम्बी भवधि तक प्रकारन रको रहा इसका हमे हाद्कि दुख है । आशा है यह ग्रन्थ साश्री न्र० पं ० चन्दावाई जी का उचित श्रभिनस्दन करने में समर्थ हो सकेगा । चाहा = = ~~ [8 ए य~~




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