योगदर्शन तथा योगविंशिका | Yogadarshan Tatha Yogavinshika

Yogadarshan Tatha Yogavinshika by मुनि सुखलाल - Muni Sukhlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३) पुस्तककफो स्च मुच मेरे परम श्रद्धास्पद उन सदायकोंकी सहा- यताका ही परिणाम समश्च, म तो इसमें स्वल्प निमित्त मात्र रहा हूँ। वे सददायक हैं प्रवर्तक भरी कान्तिविजयजीकै शिष्य सुनि श्री चतुरविजयज्ी और उनके शिष्य लघुवयस्क मुनि श्री पुण्यवबिज्ञयज्ञी । इन्तलिखित प्रतीयॉको संपादित कर उन परते प्रेस कापी करना, प्ुफ देखना तथा दिदीसारका संशो- धन करकैः उसके घरर्फोको देखना आदिः सव बौद्धिक तथा शारी- रिक काम उक्त लघुवयस्क सुनिनेही प्रधानतया किये है। उनके गरु श्री चतुरविजयजी महाराजने उक्तं कामम सहायता देनेके अलछाघा प्रेस, छपाई तथा अ्थेसे संबंध रखनेयाली अनेक उल- झनोंको खुखद्याया है। निःसन्देह उक्त दोनों गुरु शिष्यकीः सट्ददयता, उत्साह झीठता और कुददाछता सिर्फ मेरे ही नहीं बल्कि सभी साइहित्यप्रेमीके धन्यवादके पात्र है। संक्षेपमें निष्पक्षभावसे इतना दी कहूँगा कि हीयमान साधुभावका बिरलरूपसे आज जिन इनि गिनि व्यक्तिर्योम दैन होता है उन्म भ्रवर्तकजीकी गणना निःसंकोच भावसे की जानी चादिपः। प्रवत्तं कजीके दी गुण उक्त दोनो गुर शिष्यो, खासकर उक्त ङघुवयस्क सुनि उतर अये ह यद वात उनके परिच- यर्म आनेवादा कोर भी स्वीकार किये विना न रहेगा । योगसूचवूत्तिकी एक ही लिखित प्रति न्यायाभोनिधि आत्मारामजी महाराजके भाण्डारसे मिठ सकी थी जिसके उपरते प्रेस पी तैयार की गह! उस प्रतिम यत्र तत्र कर जगह अक्षर) पदः या वाक्य तक सेडित हो गये थे। दूसरी पतिके अभाव उस्र खंडित भागकी पति वहुधा अ्थ्ुसतंधानजनित कल्पनास्ते किंवा उपाध्यायजीके दी रचित श्चाखवार्ताससुचय- रीका आदि अन्य अन्थोमि पाये जानेवाङे समानः विषयक




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