अणुव्रत का उजाला | Anuvrat Ka Ujala

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Anuvrat Ka Ujala by मुनि सुखलाल - Muni Sukhlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साध्य-साधन में शुद्धि साध्य जीर साधन म एक अतर्क्य समीकरण हे। साध्य गलत हो तव तो सारी वात ही विग्ड जाती हे, पर शुद्ध साधन के लिये भी शुद्ध साधनो की नित्तात आवश्यकता हे! यदि शुद्ध साधन नही रहते हेतो साध्य भी अशुद्ध हए विना नहीं रह सकता । बहुत वार आदमी का साध्य शुद्ध रहता हे, पर वह साधनो की शुद्धि पर अडिग नहीं रहता। इससे परेशानिया घटती नहीं, वढती ही हे। महात्मा गाधी ने भी कहा धा-योग्य साध्य तक पहुचने के लिये साधन भी योग्य होने चाहिए। यह वात एक श्रेष्ठ नेतिक सिद्धान्त ही नही वल्कि एक अत्यत व्यावहारिक राजनीति मालूम पडती हे। क्योकि जो साधन अच्छे नीं होते वे स्वय साध्य का ही अत कर देते हे ओर उनम नई समस्याए तथा कठिनाइया उठ खडी होती हे । शुद्ध साध्य के लिए दड ओर लालच ये दीनो वाते गलत हे! उसके सामने स्वर्ग ओर नरक की वात भी सही नही चैठती । हमने देखा ह वहुत सारी जगह पर समता की स्थापना के लिए हिसा का सहा लिया गया उसमे एक वार विपमता भी मिट गइ तो उसने पुन सिर उठा लिया। इसीलिए अपुव्रत के निदेशक तत्त्वो के अन्तगत साध्य शुद्धि का विचार बहुत महत्त्वपूर्ण ह। आध्यात्मिक आधार अभय तटस्थता ओर सत्यनिष्ठः तो जीवन के मालिक गुण है। ये केवल आध्यात्मिक सत्य ही नही ह अपितु व्यवहारिक जीवन म॑ भी इनका बहुत वडा उपयोग हे। अभय के विना न ता अहिसा सधती हे ओर न सत्य। वास्तव मे सत्य ओर अहिसा जीवन की मूल धुरी है। जिस आदमी मे अभय का विकास नही होता उसका जीवन बुझा हुआ-सा रहता हे। अभय जीवन की सफलता का मूल हे। इसी प्रकार तटस्थता भी जीवन की एक बहुत वडी सफलता हे। सत्य तो सारी सृष्टि का आधार हे। जब सत्य का सूय छिप जाता हे तो पूरी दुनिया पर घोर अधेरा छा जाता हे। जीवन मैं भी जब सत्य का लोप हो जाता हे तो पूरे जीवन को अधेरा घेर लेता है। सत्य ओर अणुव्रत एक व्रत विचार ও




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