हिन्दी साहित्य और बिहार | Hindi Sahitya Or Bihar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भरमि + मेका रामनाममदिमा बिस्वासी, बन्दों गनपति बिश्नबिनासी । मातु सारदा चरन मनाव, जासु इषा निम॑ज्ञ मति पावों ॥ 'रामचरितमानस' की एक चौपाई है--'साँसतिं करि पुनि करहिं पस्ाऊ, नाथ प्रुत केर सहज सुभाऊ'--वह इस साहित्यिक इतिहास पर शब्दश चरिताथ॑ हुई है। बहुत दिनो की 'शास्ति' के बाद ऐसा श्रसाद' हुभा कि आज यह इतिहास हिन्दी-ससार कै सामने प्रकट हो रहा है। धन्य है वह दथानु प्रभु जिसने शास्तिः मे से बाधा दन्त्य श्त निकालकर उसकी जगह आधा दन्त्य न जड देने की कृपा दिखाई । 'योऽन्तःस्थिताति भूतानि येन षवमिदन्ततम्‌ --उसी परमपुरुष की मंगलमयी प्रेरणा स किसी सत्कायें का शुभारम्भ होता है और फिर उसी की कृपा से विध्न-बाधाओ की परम्परा पार करके वह कायें सिद्ध भी होता है । “श्रयासि बहुविघ्नानि' के अनुसार किसी महत्कायें मे विध्नतो होते ही है, किन्तु उसमे गे रहने से सफलता भी मिलती है। संभवत , इस पुस्तक के पाठक ऐसा अनुभव कर सकेंगे । इस इतिहास के लिए, सबसे पहले, प्राणिमात्र के हु श मे अधिष्ठित ईश्वर की प्रेरणा मेरे साहित्य-गुरु प० ईरवरीप्रसाद शर्मा के हृदय मे हुई थी। उन्होंने ही इस कार्य के छिए मुझे उत्प्रेरित किया और आरा की नागरी-प्रचारिणी सभा के पुस्तकाल्य-सचालक श्रीगुकदेवसिंह को मेरी सहायता के लिए उत्साहित किया था। हिन्दी-प्रेमियो से इतिहास के लिए सामग्री-संकठन करने के निमित्त अनुरोध करते हुए सबसे पहली सुचना उन्होने ही लिखी थी और सामग्री-संकलन के हेतु उसके साथ ही एक विवरण-पत्र भी तेयार कर दिया था । उनकी लिखी उस सूचना के साथ वहु विवरण-पत्र भी नीचे दिया गया है “ननन निवेदन श्रंधकार है बहौ जहौ दिष्य नदी है है चह्द सुर्दा देश जहाँ साहित्य नहीं है' मान्यवर महाशय, हभलेग दिद्दार के दिन्दी-साहित्य का इतिहास दो वष से लिख रहे हैं। दमलोगों की श्रान्तरिक श्रसिल्ाषा है सि वह यथापभव सर्वाह्गूण तैयार दो । किन्तु उसमें विशेष द १ उक्त नूचना चर विवरण-पत्र की एक इजार प्रतियाँ प्रयकू पत्रक के स्प भं, ल्मी नारायण प्रेस कतो) मैं छपवाकर इसने हिन्दी-प्रेमियों की सेवा में सेजी थीं ।--सुं०




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