हिंदी साहित्य की भूमिका | Hindi Sahitya Ki Bhumika

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Hindi Sahitya Ki Bhumika by हजारीप्रसाद द्विवेदी - Hajariprasad Dwivedi

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हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी साहित्य : भारतीय चिन्ताका स्वाभाविक विकास १ आजते लगमग हज़ार वर्ष पहले हिन्दी साहित्य बनना झुरू हुआ था । इन हजार वर्षीमे मारतवर्षका हिन्दीभाषी जन-समुदाय कया सोच-समझ रहा था, इस वातकी जानकारका एकमात्र साधन हिन्दी साहित्य ही है । कमस कम मारतवर्के अपि दिससेकी सटलवपै-व्यापी आशा-भाकाभाओंका मूतिमान्‌ प्रतीक यह हिन्दी साहित्य अपने आपमे एक एसी शन्तिशाठी वस्तु है कि इसकी उपेक्षा भारतीय तरिचार-धाराके समक्चनेमे घातक सिद्ध होगी । पर नाना कारणोसे सचमुच ही यह उपेभा होती ची आई है । प्रधान कारण यह है कि इस साहित्यके जन्मके साथ ही साथ भारतीय डतिहासमें एक अभूतपूर्व राजनीतिक और धार्मिक घटना दो गई ¡ मारतव्के उत्तर पश्चिम सीमान्तसे विजयदस इस्लामका प्रवेश हुआ जो देखते देखते इस महांदेशके इस कोनेसे उस कोनेतक फैल गया | इस्लाम जैसे सुसंगढित धार्मिक और सामाजिक मतवादसे इस देशका कभी पाला नहीं पढ़ा था, इसीलिए, इस नवागत समाजकी राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक गतिविधि इस दशके रेतिदासिकका साय ध्यान खीच छेती है । यह बात स्वामा- वेक तो है, पर उचित नहीं है । डुर्माग्यवश, हिन्दी साहित्यकें अध्ययन और




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