विश्व-संघ की और | Vishv Sangh Ki Or
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
भारत के स्वाधीनता आंदोलन के अनेक पक्ष थे। हिंसा और अहिंसा के साथ कुछ लोग देश तथा विदेश में पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जन जागरण भी कर रहे थे। अंग्रेज इन सबको अपने लिए खतरनाक मानते थे।
26 सितम्बर, 1886 को खतौली (जिला मुजफ्फरनगर, उ.प्र.) में सुंदरलाल नामक एक तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। खतौली में गंगा नहर के किनारे बिजली और सिंचाई विभाग के कर्मचारी रहते हैं। इनके पिता श्री तोताराम श्रीवास्तव उन दिनों वहां उच्च सरकारी पद पर थे। उनके परिवार में प्रायः सभी लोग अच्छी सरकारी नौकरियों में थे।
मुजफ्फरनगर से हाईस्कूल करने के बाद सुंदरलाल जी प्रयाग के प्रसिद्ध म्योर कालिज में पढ़ने गये। वहां क्रांतिकारियो
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विपय प्रवेश ३
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कल्पना के संसार मे दी थी) हजारो मील का समाचार
बेतार के तार से हमे मिनटो मे मिल जायगा; नदी, पहा,
और समुद्री से परे दूर देशो के ्राद्मियो की आपस मे
इस तरह वातचीत हो सकेगी, जैत दौ आमने सामने
खडे हृए आआदमियो की होती है । जिस आदमी को हमारी आंख
देख नही पाती, उसका चित्र हमारे सामने आ जायगा, किसी
भी प्राणी के शरीरके भीतर के अगो कीं हालत हमे मालूम हो
जायगी ओौर हम उसी विना परर उसकी चिकित्सा कर सकेगे-
ये सभी वाते किसी न किसो समय कल्पना खूप मे रह चुकी है ।
कहूँ तक गिनावें, पाठक तनिक विचार करे, तो इसी तरह के
जितने चाहे, उतने उदाहरण ले सकते है। आज दिन विश्व में
जितनी मानवी क्रियाएँ हो रही है, वे कभी न होने पाती अगर कुछ
लोग अपने मन मे उनका चित्र न बनते | उनकी कल्पनाओ ने
दो संसार में छुछ का कुछ कर डाला दै) जिन महानुभावो
ने पहले पहल किसी महान विपय की कल्यना की, उन्हे पागल
और शेखचिल्ली आदि की उपाधि मिली, परन्तु इतिहास गवाह
है कि मानव समाज उन पागलों या शेखचिल्लियो का कितना
ऋणी है ।
यह ठीक है कि कुछ कल्पनाओं या चिचारो के अमल में
आने के लिये वहुत समय लगता है। किसी को कुछ दिन या
महीने लगते है तो किसी को सैकडो या हजारो साल लग जाते
हैं । परन्तु इससे क्या ! मानव समाज की आयु करोडो वषं की
है श्रौर यह समाज श्रमी अनिश्चित काल तक रददने वाला है ।
इस लम्बे समय मे हजार दो हकार वषं भी किस गिनती मे है ।
निदान, कल्पना या विचार का बडा महत्व है, साधारण मनुष्य
इसे जल्दी नहीं सममः पाता ! स्वामी विवेकानन्द ते कदा है -
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