भारतीय दर्शन परिचय खंड १ | Bharatiya Darshan Parichaya Khand 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-प्रवेज् न्याय शुन्द का अर्थ -न्यायशास्त्र के झन्यान्य नाम--न्थायशास्त्र का उ्देश्य और प्रयोजन-- न्यायशास्त्र का महत्त्व--न्यायकार गौतम गौतम के सोलह पदार्थ--न्यायसूत्र का दिषय--न्यायद्शन का क्रमिक विकास --न्याय का साहित्य-मंडार--इस शंथ का दिषय-दिन्यास १ न्याय शब्द का झूथे-- ्याय शब्द का प्रयोग झनेक झर्थों में किया जाता है । १ साधघारणतः न्याय शब्द का झर्थ होता है नियमेन ईयते झर्थात्‌ नियमयुक्त व्यवहार । न्यायालय न्यायकत्ता आदि प्रयोग इसी अथ को लेकर हैं । २ प्रसिद्ध द्टान्त के साथ सद्श झर्थ में भी न्याय शब्द का व्यवहार होता है । यथा बीजांकुरन्याय काकतालीय न्याय रुथालीपुलाक न्याय इत्यादि । ३ किन्तु दारशंनिक साहित्य में न्याय का अर्थ होता है-- नीयते प्राप्यते विवक्षितार्थसिद्धिरनेन इति न्याय श्र्थात्‌ जिसके द्वारा किसी प्रतिपाद्य विषय की सिद्धि की जा सके जिसकी सहायता से किसी निश्चित सिद्धान्त पर पहुँचा ज्ञा सके उसी का नाम न्याय है । एक दृष्टान्त ले लीजिये । सामने पहाड़ पर घुझाँ देखकर झाप अजुमान करते हैं कि वहाँ ज़रूर आग है। इस विषय को खिद्ध करने के लिये निस्नोक्त तकप्रणाली का झनुसरण करना पड़ेगा । २ पर्वत पर अग्नि हे ७७० ७७७ ७७७ ००० ७७४७७०७७०७१७७७७७७७७०१ प्रतिज्ञा २ क्योकि वहाँ घुआआँ है ७९ 9७७ ०००७७० ७७६७७०७७७७७७ हेतु ३ जहाँ घुआँ रहता है वहाँ झाग भी रहती है जैसे रसोईघर में उदाहरण ४ पब॑त पर भी चुआँ है रपनय ५ इसलिये पव॑त पर अग्नि हे निगमन यहाँ प्रतिपाद्य चिषय है पव॑त पर अग्नि का होना । यह साध्य वा प्रतिज्ञा है । इसका




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