मातृवाणी | Matr Vani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आचार्य अभयदेव विद्यालकार - Achary Abhaydev Vidyalakar
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मदनगोपाल - Madangopal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)©
यह जगत् एक गडबड़झाछा है, जिसमें अंधकार और प्रकाश,
मिथ्या ओर सत्य, खल्यु ओर जीवन, ऊरूपता ओर सोँद्यै, घणा ओर प्रेम
इतने पास-पास लिपट गये हैं कि इनको अलग-अलग समझना प्रायः
असंभव द, इससे भी अधिक असंभव है इनको जुदा कर देना और इस
सक्छेपका--जो एक निदैय संघ्ष॑की चिभीषिकाको चयि इए है--अत करं
देना । यह संघष ओर भी भीषण इसलिये हो जाता है कि यह परदेकी
आदे छिपा हुआ हे, विरोषतः मानव-चेतनामे जहां यह सधा ्ञानके
स्यि, शक्तिके खयि, दिजयके लिये होनेवाली तीन मनोवेदनाके रूपमें
परिवतित हो जाता है । यह एक युद्ध है जो अज्ञानभरा और दुः्खदायी
है, यह और भी अधिक भीपण हो जाता है क्योंकि इसका ओर-छोर ही.
कहीं नजर नहीं भाता, किंतु इसका खातमा हो सकता है इंद्रियों, मात्ना-
स्पर्शा और भावनाओंके, अर्थात् मनके कषेत्रसे परेकी भूमिकामे--भाग-
चत चेतनामें पहुंचकर ।
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