संतों का वचनामृत | Santon Ka Vachanamrit
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.95 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रंगनाथ रामचन्द्र दिवाकर - Rangnath Ramchndr Diwakar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-प्रवेदा वचन-साहित्य-परिचय इस ग्रंथका नाम है । इसके दो खंड हैं । पहला परिचय खंड है श्रौर दूसरा वचनासूृत खंड । पहले खंड में वचन- साहित्य का सामान्य परिचय दिया है । वचन-साहित्य किसी एक महा साहित्यिक द्वारा लिखी गई साहित्यिक कृति नहीं है । वचन-साहित्य अ्रनेक संतों द्वारा समय-समय पर कहे गये अनंत वचन हैं । इस ग्रंथमें उन वचनोंमेंसे कुछ वचनों का संपादन-किया गया है । इन वचनोंका चयन श्रौर संपादन कन्नड़ भाषाके विंद्वाच् साहिर्यिक श्रौर प्रसिद्ध पत्रकार श्री रंगनाथ रामचंद्र दिवाकरने किया है। दिवाकरजीने जब वे १९३२ में हिडलगी के बंदीगह में थे इन वचनों का संपादन करके वचन- शास्त्र-रहस्य नाम से एक वड़ा ग्रंथ लिखा । जब वह ग्रंथ प्रकाशित हुमा तब कन्नड़ भाषाके कुछ विद्वाच् साहित्यिकों ने उस ग्रंथ के विषय में लिखा था कि लोकमान्य तिलकजीने माँडलेके जेलमें गीता-रहस्य लिखा श्रौर दिवाकरजीने हिंडलगी जेलमें वचनशास्त्र-रहस्य । प्रस्तुत वचन-साहित्य- परिचय उसी ग्रंथ का संक्षेपमें किया हुआ स्वतंत्र हिंदी भावानुवाद है । वचन-साहित्यको कन्नड़में वचन-शास्त्र कहने की परिपाटी है । कास्त्र- का अर्थ से है मोक्षका अथे मनुष्यकी नित्य निर्दोष आ्रानंदकी स्थिति झ्विरल शाइवत सुख-स्थिति । वह मानव-मान्रका आत्यंतिक ध्येय हैं। प्रत्येक प्राणी शाइवत सुख प्राप्त करनेका प्रयास करता है । वह महा व्येय कैसे प्राप्त करना चाहिए ? उसके साधन क्या हैं ? उन साधनोंमें क्या चाधाएं हैं ? उसमें कौन-से घोखे हैं ? उनका निवारण कंसे करना चाहिए ? आरादिका सांगोपांग विवेचन करना इस शास्त्र का क्षेत्र है । यही कार्य वचनकारोंने श्रपने वचनों द्वारा किया है इसलिए उसको शास्त्र कहते हूं शास्त्र दब्दके पहले जो वचन दाब्द लगा है वह दैलीका रथ बोधक है। वचन कन्नड़ साहित्यकी एक विशिष्ट प्रकारकी गद्यकौली है । श्रर्थाद् वचन- भ्रथ वचन कलीमें लिखा गया मोक्ष-शास्त्र है । . मोक्ष-शास्त्र भारतके प्राचीनतम शास्त्रोंमें से एक है। इस विषय पर भारत के अनेक महापुरुषोंने चितन मनन तथा प्रयोग किये हैं । संस्कृत भाषामें इसके ग्रंथ उपलब्ब हैं । वेद उपलिषद् मीत्ता श्रागम भ्रादि श्रनेक अ्रकारके अ्रसंख्य ग्रंथ हैं । कितु कालांतरसे संस्कृत भाषा जन-भाषा नहीं रही ।. ऐसा हुम्ना कि जनताकी भाषा अलग श्र विद्वान शास्त्रज्ञोंकी शापा श्रलग हो गई
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