भक्त सौरभ | Bhakt Saurabh
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ भक्त-सोरभ
यहातक तो इनके शिष्य होनेके सम्बन्धे संक्षेपे रिता गया ।
अत्र अगे इनके साखिक जीवन, जगम संतजनोको क्या-क्या
बाघाएँ भोगनी पड़ती हैं और उनके बीचमें विरक्त-त्रेष्णवका
जीवन किस कसौटीपर पहुँचता है एवं साधुकी सहनराक्तिका।
प्रभाव सांसारिक जीवनके उपरर कसा पडता है, इन सव दष्टियोसे
इनके जीवनकी कुछ खास-खास घटनाओंका उल्लेख यहाँ प्रेमी
पाटक महानुभारवोके आनन्दार्थं किया जाता है | |
परतिदिनकी मति इनके यहाँ आज भी दडाकोंका जमघट जम
रहा था । रासमें युगलखरूपका नृत्य हो रहा था, रंग छा रहा था,
अनुपम आनन्द बरस रहा था। इसी समय श्रीरधिकाजीके चरणकमलसे
वधस पूरक प्रथक् हो गया । आप वर्ह बेठे थे ही | तुरत
'नगुनौ तोरि नूपुर गुद्यौ महत-ममा-मधि रासके'--आपने अपन
यज्ञोपवीत तोडकर श्रीराधिकाजीके धुधरूमं गूथ दिया ! यह दव
दर्कलोग आश्वयचकित होकर बोल उठे--'व्यासदासजी ! यह
आपने क्या किया ? अरे राम राम ! यज्ञोपवीतको आपने पगमें बाप
दिया !” आपने तत्काल उत्तर दिया किं व्रहुत दिनोँसे इयक।
ढोया था, आज अच्छे मौकेपर इसे बहुत सुन्दर कामम लगा
दिया | इससे अच्छा इसका उपयोग और क्या हो सकता
भगवच्चरणोंकी प्राप्ति ही तो सब धर्मोका लक्ष्य है । इसीछिये मैंने
आज इस झुभावसरमें इस सूत्रको अपने परम इष्ट श्रीकृष्णप्राणाधिका
राधिकाजीके चरणोंमें समपण कर दिया है, यट्टी तो इस मूत्रका
सोभाग्य है । यह उत्तर सुनकर सब भावुक बहुत आनन्दित हुए ।
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