भक्त सौरभ | Bhakt Saurabh

Bhakt Saurabh by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ भक्त-सोरभ यहातक तो इनके शिष्य होनेके सम्बन्धे संक्षेपे रिता गया । अत्र अगे इनके साखिक जीवन, जगम संतजनोको क्या-क्या बाघाएँ भोगनी पड़ती हैं और उनके बीचमें विरक्त-त्रेष्णवका जीवन किस कसौटीपर पहुँचता है एवं साधुकी सहनराक्तिका। प्रभाव सांसारिक जीवनके उपरर कसा पडता है, इन सव दष्टियोसे इनके जीवनकी कुछ खास-खास घटनाओंका उल्लेख यहाँ प्रेमी पाटक महानुभारवोके आनन्दार्थं किया जाता है | | परतिदिनकी मति इनके यहाँ आज भी दडाकोंका जमघट जम रहा था । रासमें युगलखरूपका नृत्य हो रहा था, रंग छा रहा था, अनुपम आनन्द बरस रहा था। इसी समय श्रीरधिकाजीके चरणकमलसे वधस पूरक प्रथक्‌ हो गया । आप वर्ह बेठे थे ही | तुरत 'नगुनौ तोरि नूपुर गुद्यौ महत-ममा-मधि रासके'--आपने अपन यज्ञोपवीत तोडकर श्रीराधिकाजीके धुधरूमं गूथ दिया ! यह दव दर्कलोग आश्वयचकित होकर बोल उठे--'व्यासदासजी ! यह आपने क्या किया ? अरे राम राम ! यज्ञोपवीतको आपने पगमें बाप दिया !” आपने तत्काल उत्तर दिया किं व्रहुत दिनोँसे इयक। ढोया था, आज अच्छे मौकेपर इसे बहुत सुन्दर कामम लगा दिया | इससे अच्छा इसका उपयोग और क्या हो सकता भगवच्चरणोंकी प्राप्ति ही तो सब धर्मोका लक्ष्य है । इसीछिये मैंने आज इस झुभावसरमें इस सूत्रको अपने परम इष्ट श्रीकृष्णप्राणाधिका राधिकाजीके चरणोंमें समपण कर दिया है, यट्टी तो इस मूत्रका सोभाग्य है । यह उत्तर सुनकर सब भावुक बहुत आनन्दित हुए ।




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