संत तुकाराम | Sant Tukaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ट | ` संततुकरारोमं के पद्दाड़ हैं । इंद्रायणी पूरब की श्रोर बहती जाती है; पर देहू के पास काशी जी कौ गंगा सी वह उत्तरवादिनी हो जाती है । पंढरपुर में श्रीविइल इंट पर अकेले दी खड़े हैं । वहाँ उन के पास रखुमाई की मूर्ति नहीं । रखुमा माता का मंदिर वहाँ निराला है। पर देहू में विडल और रखुमा बाई।की मूर्तियाँ पास-पास ही बिराज रही हैं । ये मूतियां ठकाराम महा- राज के श्राठवें पूर्व ज विश्व॑ मर बाबाजी के हाथ से स्थापित हुई हैं । मंदिर उत्तराभिमुख है । सामने गरुड़ जी हैं । हनूमान भी पास में हैं । पूर्व की ओर विज्नराज विनायक हैं श्रौर एक सैरवनाथ का भी स्थान है। दक्षिण में हरेश्वर का मंदिर, उस के पीछे बल्लालबन और बहाँ पर तिदुषेश्वर का देवालय श्रौर उसी के पास श्रीलचमीनारायण के ऐसे दो देवालय श्र हैं । ये सब देव-रथान तुकाराम के जन्म से पूर्व के ही हैं । ठुकाराम के एक ्रभंगमें इन सबों का इसी प्रकार से वर्णन है । ठुकाराम के कारण देहू प्रसिद्ध हो जाने पर नदी के तीर पर एक पुंडलीक का भी मंदिर श्रब बन गया है । इंद्रायणी यहाँ से मील डेढ़ मील तक बड़ी गहरी है। इसी स्थान पर तुकाराम अकेले श्रा कर ईश्वर-मजन करने बैठते थे । जत्र चुकाराम की हस्तलिखित कविताओं के काशज़ इंद्रायणी में डुबोए गए, तब यहीं नदी के किनारे एक बड़ी शिला पर तुकाराम तेरदद दिन तक मुख में पानी की बूँद भी न डाले पड़े रहे थे । इसी शिला पर उन्हें ईश्वर का साक्तात्कार हुश्ा था ग्रौर उन की कविता के इवाए हए बस्ते तेरदवे दिन नदी में फूल कर तैरने लगे थे । भगवान्‌ बुद्ध के चरित्र मेँ जिस बोधि- बच्च के नीचे उन्हें निर्वाण-ज्ञान प्राप्त द्या, उस काजो महत्व है, ठुकाराम के चरित्र में इस शिला का भी वही महत्व है | हुकाराम के भक्तों द्वारा यह शिला श्रव देहू के. विछलल मंदिर में लाई गई है श्र तुकाराम की ज्येष्ठ पत्नी के नाम से तुलसी जो बृदावन मंदिर में है, उसी के पास वह अब रक्‍्खी गई है । मंदिर के पश्चिम में तुकाराम का मकान है । जिस कमरे में तुकाराम का जन्म हुश्रा वहाँ अब भक्तों ने एक नई विदल-मू्िं की स्थापना की है! इस वणन से पाठक श्रपनीद्ष्टिके सामने ददर का चित्र खीच सकेंगे | सिम ° देहूरगँव की बस्ती प्रायः मराठा कुनबी लोगों की है। ये लोग जाति के शूद्र होते हैं । इन में से बहुतेरे खेती-बारी करते हैं । पर कुछ थोड़े व्यापार भी करते हैं । महाराष्ट्र के इन छोटे-छोटे गाँवों में कुछ-कुछ काम वंश-परंपरा ' से चलते हैं । इन्हीं कामों में से महाजन का एक काम है। बाज़ार में बेचनेवाले श्र खरीदनेवाले दोनों से महाजन का संबंध आता है। देचनेवाले के पास माल या खरीदनेवाले के पास रुपया काफ़ी नहो, तो. इस महाजन की जमानत पर व्यवहार किथा जाता दै श्र दोनों और से इसे नियमित फी सदी कमीशन मिलता है। देहू गाँव की सहाजनी तुकाराम के कुल में थी। इस के सिवाय तुकाराम के पूर्वजों की कुछ खेती-बांरी, एक-दो बाड़े और थोड़ी-सी साहूकारी भी थी। थोड़ा-सा व्यापार भी इन के यहाँ होता था | सारांश तुकाराम का.कुल देह के प्रतिष्ठित लोगों में माना जाता था | ब्राह्मणु-जाति के न होने के कारण इन्हें यद्यपि. वेदाध्ययन का अधिकार न था, तथापि पुरांणादि ग्रंथों का ज्ञान तथा महाराष्ट्र भर में उस समय की प्रचलित विछ्ल-भक्ति और पंदरपुर की वारी इस कुल में चली आई थी।




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