अर्थशास्त्र के सिद्धान्त | Arthshastra Ke Siddhant
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23.03 MB
कुल पष्ठ :
890
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अल्फ्रेड मार्शल - Alfred Marshall
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डॉ श्रीगोपाल तिवारी - Dr. Shri Gopal Tiwari
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-सुची
भाग 1
प्राथमिक सर्वेक्षण
अध्याय भूमिका : 1. अर्थशास्त्र घन तथा मनुष्य के ध्ययन की एक शाखा
है! संसार का इतिहास घामिक तथा राजनीतिक शक्तियों से बना है। 2, यह
प्रश्न है कि क्या निर्धेनता आवश्यक है, अर्थशास्त्र के लिए सर्वाधिक रोचकता
का बिपय है। 3. इस विपय का मुख्यतया हाल ही में विकास हुआ है। 5.
प्रसिस्प्धां रचनात्मक तथा विध्वंसात्मक दोनों ही हो सकती है: रचमात्मक होने
पर भी यह सहकारिता से कम हितकारी है ! किन्तु आधुनिक व्यवसाय की आधार
भूत दिशेपताएँ उद्योग तथा उद्यम की स्वतंत्रता , आत्मनिर्भरता तथा दूरदृष्टि
है। 5. इन विशेषताओं तथा अर्थविज्ञान का स्थूल विवरण इस माग से हटा
कर परिशिप्ट “क' तथा 'ख' मे प्रस्तुत किया गया है। पृष्ठ 1-11
अध्याय 2... अर्थशास्त्र का सार: 1... अधेशास्त्र मुख्यतया कार्य करने के उन
प्रोस्साहनों तथा इसमें होने वाले उन प्रतिरोधों से सम्बस्वित है जिनकी माताओं
को स्थूल रूप में द्रव्य द्वारा मापा जा सकता है। इस माप का केवल इन शक्तियों
की मात्रा से ही सम्बन्ध है: प्रयोजनों के गुण, चाहि वे श्रेप्ठ हों अथवा अधम, स्वा-
भावगत मापे नहीं जा सकते। 2. किसी धनी व्यक्ति की अपेक्षा किसी निर्षन
व्यक्ति के सम्बन्ध में एक शिलिग की शक्ति अपेक्षाकृत वड़ी होती हैः किन्तु
अर्थशास्त्र मे साघारणतया व्यापक परिणामों की खोज की' जाती है। जो बैयक्तिक
विशिष्टताओं से बहुत कम प्रभावित होते हैं। 3. स्वयं आदत अधिकतर
सुचिन्तत चयन पर आधारित है। 4, 5. आर्थिक प्रयोजन पुर्ण रूप से स्वार्थ
पूर्ण नही होते । द्रव्य की इच्छा का अथथ यह नहीं कि उस समय अन्य बातों का
अमाव नहीं पड़ता और वह स्वयं उच्च अ्रयोजनों से उत्पन्न हो सकती है। आर्थिक
माप का क्षेत्र घीरे-घीरे ऊँचे परमाथेवाद सम्बन्धी कायें तक फल सकता है।
6. सॉमूहिक कार्य के प्रयोजन अर्थशास्त्री के लिए बड़े तथा बढ़ते हुए महत्व के
विषय है। 7... अर्थशास्त्री मुख्यतया मानव के एक पहलू पर विचार करते है,
किन्तु अर्थशास्त्र किसी वास्तविक व्यक्ति के, न कि किसी कात्पनिक व्यवित के,
जीवन का अध्ययन है। परिशिष्ट देखिए। पृष्ठ 12-24
अध्याय 3... आार्थिक सामान्यीकरण अथवा नियम : 1. अ्ंशास्त्र में आगमन तथा
निगमत दोनों का प्रयोग होता हैं, किन्तु इनको विभिन्न उद्देश् गे के लिए विभिन्न
अनुपात मे आवश्यकता होती है। 2, 3. इन नियमों का भौतिक घिज्ञान
के नियम यथार्थता से भिन्न होते है। सामाजिक तथा आर्थिक नियम भौतिक
से अधिक जडिल है, किन्तु ये कम यथाथें नियमों के अनुरूप है। 4.
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