हिन्द - स्वराज्य | Hinda Svarajya
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
पं. कालिकाप्रसाद - Pt. Kalikaprasad,
मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पं. कालिकाप्रसाद - Pt. Kalikaprasad
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मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कांग्रेस और उसके पदाधिकारी ९
हमारा मेल बैठता नहीं दिखाई देता। मुझे तो स्वराज्यकी ही चर्चा
भाती है, दूसरी बुद्धिमत्ता-भरी बातोंसे मुझे संतोष नहीं मिलनेका |
सं०--आप तो घबरा गये, पर मेरा काम घबरानेसे न चलेगा।
आप जरा सब्रसे काम लें तो आप देखेंगे कि आप जो चीज चाहते हैं
वही आपके सामने श्रा जायगी | याद रखिये, हथेलीपर सरसों नहीं
जमती । आपने मुझे रोका और आपको भारतका भला करनेवालों
की चर्चा नहीं सुद्दाती, यह बताता है कि कमसे कम श्रापके लिए तो
स्वराज्य अभी बहुत दूर है। आप-जैसे बहुतसे हिन्दुस्तानी हों तत्र तो
हम आगे जाकर भी पीछे पढ़ जायेंगे | यह बात जरा सोचनेलायक है ।
पा०--मुझे तो ऐसा लगता है कि इस तरहकी गोल-परोल बातें
करके आप मेरे सवालको उड़ा देना चाहते हैं। जिन्हें आप हिन्दुस्तान
का हित करनेवाला समभते हैं उन्हें में वैसा नहीं मानता। तत्र में उनके
किस उपकारकी बात आपसे सुनूँ ! जिन्हें आप भारतके पितामह कहते है
उन्होंने उसकी कौनसी भलाई की? वे तो कहते हैं कि अंग्रेज शासक
न्याय करेंगे और हमें उनके साथ मिलकर काम करना चाहिए |
सं०--मैं बड़ी विनयके साथ आपसे कहूँगा कि इन महापुरुषों
के बारेमें आपका बेअदबीसे बोलना हमारे लिए. लजाकी बात है।
जर उनके कामोंकी ओर तो देखिये। उन्होंने अपना जीवन भारतको
अपंण कर दिया। उन्हींके पढ़ाये हुए पाठ तो हमने पढ़े हैं। अंग्रेजोंने
दिन्दुस्तान्का खून चूस लिया है, यह बात आदरणीय दादाभाईने ही तो
हमें बतलाई है! अगर आज भी अंग्रेजोंपर उनका विश्वास बना है तो इससे
क्या बिगड़ गया १ जवानीके जोशमें श्रगर हम एक कदम अगे बढ़ जाते हों
तो क्या इससे दादाभाई हमारे लिए. कम पूज्य हो गये ! क्या इसी कारण
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