भारत की लूट एवं बदनामी | Bharat Ki Loot Avam Badnami

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Bharat Ki Loot Avam Badnami by धर्मपाल - Dharmpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रधानाचार्यों के बीच इन पुस्तकों को लेकर गोष्टियों का आयोजन भी हुआ। इसके बाद सभी ओर से हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का अग्रह वढने लगा। स्वयं श्री धर्मपालजी भी इस कार्य के लिये प्रेरित करते रहे । अनेक वरिष्ठजन भी पूछताछ करते रहे। अन्त में इन ग्रन्थों के हिन्दी अनुवाद का प्रकाशन तय हुआ। गुजराती अनुवाद कार्य का अनुभव. था इसलिये अनुवादक दूने में इतनी कठिनाई नहीं हुई । सौभाग्य से अच्छे लोग सरलता से मिलते गये ओर कार्य सम्पन्न होता गया। आज यह आपके सामने है। | इस संच में कुल दस पुस्तकें हैं। (१) भारतीय चित्त, मानस एव कालं (२) १८ वीं शताब्दी में भारत में विज्ञान एवं तंत्रज्ञान (३) भरतीय परम्परा में असहयोग (४) रमणीय वृक्ष : १८ वीं शताब्दी में भारतीय शिक्षा (५) पंचायत राज एवं भारतीय राजनीति तंत्र (६) भारत में गोहत्या का अंग्रेजी मूल (७) भारत की लूट एवं बदनामी (८) गांधी को समझें (९) भारत की परम्परा एवं (१०) भारत का पुनर्बोध । सर्व प्रथम पुस्तक *१८ वीं शताब्दी में भारत में विज्ञान एवं तंत्रज्ञान' १९७१ में प्रकाशित हुई थी और अन्तिम पुस्तक 'भारत का पुनर्बोध' सन्‌ २००३ में। इनके विषय में तैयारी तो सन्‌ १९६० से ही प्रारम्भ हो गई थी। इस प्रकार यह ग्रंथसमूह चालीस से भी अधिक वर्षो के निरन्तर अध्ययन एवं अनुसन्धान का परिणाम है । २. विश्व में प्रत्येक राष्ट्र की अपनी एक विशिष्ट पहचान होती है। यह पहचान उसकी जीवनशैली, परम्परा, मान्यताओं, दैनन्दिन व्यवहार आदि के द्वारा निर्मित होती है। उसे ही संस्कृति कहते हैं । सामान्य रूप से विश्व में दो प्रकार की विचारशैली, व्यवहारशैली दिखती है । एक शैली दूसरों को अपने जैसा बनाने की आकांक्षा रखती हे । अपने जैसा ही बनाने के लिए यह जबर्दस्ती, शोषण, कत्लेआम आदि करने मे भी हिचकिचाती नहीं, यहां तक की ऐसा करने में दूसरा समाप्त हो जाय तो भी उसे परवाह नहीं। दूसरी शैली ऐसी है जो सभी के स्वत्व का समादर करती है, उनके स्वत्व को बनाए रखने में सहायता करती है। ऐसा करने में दोनों एक दूसरे स प्रभावित होती हैं और सहज परिवर्तन होता रहता है फिर भी स्वत्व बना रहता है। यह तो स्पष्ट है कि इन दोनों में से पहली यूरोपीय अथवा अमेरिकी शैली है तो दूसरी भारतीय । इन दोनों के लिए क्रमशः पाश्चात्य . ओर प्राच्य एेसी अधिक व्यापक तेरह




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