गिरिजाकुमार माथुर उनका काव्य | Girijakumar Mathur Unaka Kavya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : गिरिजाकुमार माथुर उनका काव्य  - Girijakumar Mathur Unaka Kavya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दुर्गाशंकर मिश्र - Durgashankar Mishra

Add Infomation AboutDurgashankar Mishra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १५ ) काव्यशिल्प, ध्वनि एवं वस्तु का सर्वथा मौलिक निकषं प्रस्तुत किया गया है। सन्‌ १६६७ में उन्हें दिल्ली आकाशवाणी पर “विविध भारती' कै निदेशक--संप्रति स्टाफ ट्रेनिंग, आकाशवाणी के निदेशक--पद पर नियुक्त किया गया और सन्‌ १६६८ में उनका पाँचरवाँ काव्य संकलन “जो बध नहीं सका” प्रकाशित हुआ । इस प्रकार माथुर जी की लेखनी सर्वदा गतिशील रही है ओर उनका कवि व्यक्तित्व निरंतर विकाघशील एवं वधमान ही है । काव्य-साधना के विविध सोपान इसमें कोई संदेह नहीं कि “श्री गिरिजाकुमार माथुर नये युग की हिंदी कविता के एक समर्थ व्यक्तित्व हैं! और डॉ० नगेद्ध का तो स्पष्ट रूप से यही मत है कविता गिरिजाकूमार का शगल नही दहै, वहु उनका स्वभाव | इसलिए वहु निरंतर लिखते हैं। इस प्रकार श्री गिरिजाकुमार माथर को सहज स्वाभाविक कवि मातना ही उचित जान पड़ता है ओर यहाँ यह स्मरणीय है कि संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध प्राचीन विद्वान राजशेखर ने प्रतिभा भेदके अनुसार कवि के सारस्वत, भाभ्यासिक या भौपदेशिक नामकं तीन प्रकार मानते हुए श्यामदेव का यह्‌ मत उद्धृत क्रियादि कि सारस्वत कवि इन तीनों में मूर्घन्य होता है क्योंकि वह अपने विषय में स्वतंत्र रहता है- तेषां पूवे पूवः श्रेयान्‌ ईति श्यामदेवा । यतः सारस्वतः स्वतंत्र स्थाद्‌ भवेदाभ्थासिको मितः। उपदेशकविस्त्वत्र॒वत्गु फल्गु च जल्पति: ॥ इस प्रकार गिरिजाकुमार जी को सारस्वत कवि समझना ही युक्तिसंगत होगा, क्योंकि उनकी काव्य-साधता अभ्यासजन्य ने होकर सहज स्वाभाविक ही है ओर उनके जीवनवृत्त का अनुशीलन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि शेशवावस्था सै ही उनकी प्रवृत्ति काव्य सृजन की ओर रही है ।. उनके पिता श्री देवीचरण जी भी ब्रजभाषा में काव्यरचना करते थे और सन्‌ १६०४ मे उनको दाशेनिक कविताओं का एक संग्रह 'तत्वज्ञान' अलौगढ़




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now