छत्रपति शिवाजी | Chhatrapati Shivaaji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) भी ध्यान दिया जाय, यह इतिहास तो बहुत ही निकृष्ट है। ये इतिहास प्रायः मुसल्लमानों द्वारा खिखे गये हैं और उनमें स्थल स्थल पर पद्चवात ओर तरफदारोओ प्रमाणमिलत হল में लेखकों का अपराध नहीं, जिन दर्बारों में रहकर वे पारि तोपिक पानेथे, जिन लोगो प्रसन्‍न करनेके लिए 3 इतिहास लिंखे जाते थे, जिस श्रभिप्राय सेवे वृत्तान्त ठे ~ पीव किये जाते थे, वे कारण थे जा उनकी खुशामद खे 7२ इतिहास लिखनेक लिए विवश फरते শী । কান रुूएल पर उन इतिदासों में आत्मश्छाघा और पतक्तपात के न्िहन मिलते है ओर स्लेड्छो की वीरता, उनकी हिम्मत और वित्रय से बुक्ता प्रध्यन्तं ज़'रदार शब्दों में लिखे गये हैं। जहां कहीं हिन्द होने ज्यभो पाई हे वहां उसे चालबाज़ी ओर अन्यान्य कारणों पर विरभेर किया है ( अनेक स्थत्त पर दिदुओ को 'सग! ( कुत्ता ) का. फिर! तथा লী शब्दौ से याद्‌ किया गया है | कहीं वीर হু जाति के निमित्त प्राण देने बालो को डाकू लूटेरा बताया गया है निदान जिस प्रकार बना दे दिदुशों की वीरताको भीरुता में परिवर्धित किया गया है | मसलमान लेखको का क्या अ्रपराध है जब कि चतंमान समय के पाशचात्य विद्वान भी इस दोपषसे मुक्त नहीं है । योरोपियन जातियो के युद में युद्ध समाचार- संवाददाता अपने अपने देशों को भेजत हे, वे भी इसी प्रकार ऋत्युक्तियों ओर पक्तपात से भरे होते हैं। प्रायः थारोपियन लेख को ने अर्दबी मापषाकी अन्यायी एयपं ब्रह्मा के वीरो को डाक शब्द से याद्‌ किया है । यदि अंग्र ज़ अैसलो सभ्य जाति उन क्षोगों की जो अपनी परातुभूप्रि की स्वतन्त्रता के लिये प्राण दें डाक आदि कहने के दोष से लिप्त हो खकती है तथ बेचारे मसलमान लेख को का क्या अपराध है। देशप्रिय सज्जनों को दाहरी लड़ाई करनी एडती दे, प्रथम अपनी जाति शोर देशक्ने




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