पाटलिपुत्र की कथा | Paataliiputra Kii Kathaa

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Paataliiputra Kii Kathaa by सत्यकेतु विद्यालंकार - SatyaKetu Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ग भारत के प्राचीन इतिहास १२ मेरे दो प्रथ प्ले प्रकाशित हो चुके हैं । सन्‌ १६३० में मेरा “मौर्य साम्राज्य का इतिहास” प्रकाशित हुआ था | उसके बाद १६३४ में गुझकुल विश्वविद्यालय हरिद्वार से प्रकाशित “भारतवर्ष का इतिहासः में “बौद्धाल का राजनीतिक इतिद्दास” मैंने लिखा था। इन दोनों ग्रथों मं समगध के इतिहास का कुछ महत्वपूरएें भाग आरा गया था | यह स्वाभाविक है, कि इस पुस्तक को लिखते हुए अपने इन दोनों ग्रन्थों का में विशद्रूप से प्रयोग करूँ | यही कारण है, कि मगध के बाहंद्रथ, शैशुनाक, नन्‍्द और मौय॑बंशों के इतिहास में मेरी इन पहली पुस्तकों की सामग्री कुछ परिवर्तित रूप में फिर से समाविष्ट कंर दी गई है। यह कदना कठिन है, कि इस पुस्तक में कोई मौलिकता है। आचाय चाणक्य के शब्दों का अनुसरण करते हुए में यही कद सकता हूँ ,क्ति मास्त के प्राचीन इतिहास के ज्षेत्र में जो काय पहले के आचार्यों ने किया है, प्रायः उस सबको एकत्र कर, उसे सम्मुख रस्त, यह इतिहास मैंने तैयार किया है। मुझे आशा है , पाठक इसे पढ़कर मगध के गौरवमय इतिहास की एक माँकी বী লন্্বী | इस ग्रन्थ के प्रकाशक “हिंदुस्तानी एकडेमी? की इच्छा यद्द थी, कि इसे “पटना की कहानी! नाम से प्रकाशित किया जाय। इसी लिये मागध साम्राच्य के पतन ब पाय्लीपुत्र के गौरब की इतिश्री हो जाने के बाद भारत की इस प्राचीन नगरी का पटना के रूव से किस प्रकार उद्धार हुआ , इस विषय पर भी कुछ प्रकाश लना श्राघश्यक था । इसी लिये ग्रन्थ के अंतिम तीन अध्यायों में मध्य काल और आधुनिक काल के पटना की कद्दानी का भी संक्षेप के साथ उल्लेख कर दिया गया है। कार्तिकी पूर्खिमा | सत्यके तु बिद्यालंकार खंबत्‌ २००६




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