शासन समुद्र : भाग 2 (क ) | Shasan-samudra : Part-2 (A)
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
288
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शासन-समुद्र ५
१. मुनिश्री जवानजी मारवाड़ में “बडी पादू' के वासी, जाति से ओसवाल
और गोत्र से लोढ़ा थे । उन्होने स० १८६१ में आचाय॑ श्री भारीमालजी के हाथ से
दीक्षा ग्रहण की । वे आचाय॑ श्री भारीमालजी के प्रथम शिष्य हुए ।
२. मुनिश्री दीक्षित होने के पश्चात् पांच वर्ष (१८६२ से १८६६) आचार्य
श्री भारीमालजी की सेवा मे और पाच वर्ष (स० १८६७ से १८७१) मुनिश्री
हेमराजजी के सान्तिध्य मे रहे । वहा उन्होने विनय और गुरु दृष्टि की आराधना
करते हुए ज्ञानाजंन किया और वहुश्नुती बने ।*
उन्होने सिद्धातो का गहरा अध्ययन कर तत्त्व चर्चा की अच्छी धारणा की ।
व्याख्यान कला में वे बहुत कुशल बने | हेतु, दुष्टान्त उन्हे बहुत याद थे । आगम,
थोकड़े व व्याख्यानादिक के हजा रो श्लोक कठस्थ थे । उनका स्वाध्याय (पूनरावतेन)
का क्रम भी नियमित रूप से चलता था।*
१. जवान जोरावर करी, लोढा जाति सुलीन।
ओस वश मे अवतरया, चरण हरष धर चीन ॥।
सवत् अठारे इगसठे, भारीमाल रै हाथ।
चारित्र धारुयो चूप सू, सूरपर्ण साख्यात॥
वासी बड़ी पादू तणा, वारू विनय विवेक ।
गुरु-भक्ता गण-आगला, पवर गुणागर पेख ॥
प्रथम शिष्य भारीमाल ना, जाझी कीरत जाण।
गुरुकुल वासे सेवा, सखरी भात सयाण॥
(जवान मुनि गुण वर्णन ढा० २ दो० १ से ४)
२. भारीमालजी सेवा कीधी रे, वहु वपं आत्म दम लीधीरे।
पाया ज्ञान तणी वहु ऋधी ॥
पछ हेम नी सेवा मे आया रे, पाच वर्ष ताई सुख पायारे।
बहुश्ुत अधिक सवाया॥
(गुण वर्णन ढा० २ गाथा ३, ४)
विनीत घणो सतग्रुरु तंणो, गुरुकुल वासे वसत ।
अग चेष्टा मांहै वत्तंतो, सीखे झूत सिद्धत ॥।
(गुण व० ढा० १ गा० ११)
३. ज्यारी कठ कला हद भारीरे, दृष्टतनी चछ्विन्यारीरे।
सूत्र सिद्धान्त मे अधिकारी ||
सभा चातुर अधिक निहालोरे, ऋष जवान जिसा सुविशालोरे।
विरलाई इण पचम कालो॥
(गुण० ढाल २ गा० ७, ८)
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