साखी खंड - ३ | Sakhi Khand-3

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Sakhi Khand-3 by जयदेव सिंह - Jayadev Singhडॉ. वासुदेव सिंह - Dr. Vasudev Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपौदृछात : ७ कै गुप्त-न को अर्यात्‌ वास्तविक स्वरूप को शब्दल्पो वोनक (गुरु द्वारा प्रदत्त ज्ञान-दीक्षा) वतलाता हैं। कबीर का प्रमुख साहित्य--रमनी, साखौ घौर शव्द (पद) बीजक में उपलब्ब है । कवीर ने वीजक (रमैनी) में सृष्टि, मोक्ष, मनोमाया, माया से सावधानी, भव-पन्य के कष्टो, संसार की असारता, सस्यानुभव, ज्ञान-मूमिका, देवादि- मोह-विडम्बना, सत्संग महिमा, आसक्ति से जान कौ दुखंमता, सद्गुर-मदहिमा, भक्ति- महिमा वादि का विक्लद विवेचन क्ियाहँ। द्नन के साथ कान्य का सुन्दर सामञ्ञस्य “वीजक' की शन्य॒विरोपता है । कवीर के सिद्धान्त, साधना एवं काव्य-वैशिष्टय पर विस्तार से स्वतन्वर छ्प से टिखा जायगा । यहा हम केवल इतना संकेत करना चाहते है कि अब तक कवीर-वाणी के इस महत्त्वपूर्ण अंश पर साहित्यकारों द्वारा भपेक्षित विचार का अभाव वस्तुतः कबीर के साथ बन्याय ही कहा जायगा । बीजक' के लोकप्रिय न होने का कारण कवोरपन्यियों की कट्टरता भी है। वे इसे मन्त्रों की तरह प्राय. गोपनीय ही रखना चाहते हैं। वे जन-सामान्य में इसका प्रचार अनुचित मानते है । कहा जाता है कि वीजक का मूल कबीर के दो शिष्यो भगवानदास ओर जगन्नाथ साहब के हाथ रगा। भगवावदास ने इसे गोपनीय ग्रन्थ बना दिया। उस पर दूसरों की दृष्टि न पड़ने दी । यदि किसी ने उसे अध्ययन-मनन के लिए माँगा भी तो भगवानदास या भग्गोदाप्त ने अस्वीकार कर दिया, केवल सम्प्रदाय के दीक्षा- कार्यो में ही इसका उपयोग हुआ । यह्‌ प्रति भगताहौी परम्परा के कवीर-पन्थियों में ही सुरक्षित रही 1 बीजक की दूसरी प्रति जो जग्नन्नाथ साहव के अधिकार में थी, कवीरपन्यियों में उसका ही अधिक प्रचार-प्रचार हो सका । उसी के अधार पर साम्प- दायिक भक्तौ के द्वारा टीका भौर भाष्य भी लिखि गये । कहने का तात्पर्य यह हैं कि कबीरपन्यियो में बोजक को ही अधिक प्रामाणिकं एवं आदि भ्रन्थ माना जाता है। विभप जी० एच० वेस्टकॉट ने भी लिखा है कि “धवीजके कबीर साहब की शिक्षा का प्रामाणिक ग्रन्थ माल लिया गया हैं। यह सम्भवत, १५७० ई० में या सिक्‍खों के पाँचवे गुरु अर्जुन द्वारा नानक की शिक्षा आदि-प्रन्य पे लिखि जाने के वीस वर्षं वाद लिखा गया था 1१ कृवीरपन्थौ सन्तो द्वारा इसके पाठ-निर्धारण एवं टीका-माष्य-लेखन के सम्बन्व मे समय-समय पर कार्य होते रहे ह । इन प्रन्यो मे हंखदास शास्त्री का “कवीर-बीजक',२ मोत्तीदास चेतनदास का कवीर साहेव का बीजक! ,उ सदाफल्देव जो का वौजक-माण्यः,४ खडगविकास प्रेस १. इद धत (वा 22.111, क, 7 २ कवीर सन्य अकाशत समिति, वारावंकी 1 ই कबीर प्रेस, सीयावाग, वढैदा, सन्‌ १६३९ । ४. सुक्ति पुस्तकालय, पकडी, वलिया, संवत्‌ २०१३ | / ।




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