समन्वय | Samnavya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
414
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डाक्टर भगवानदास - Dr. Bhagwan Das
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गणपति-पूजा ৬
मे, श्नौर पति मे श्रयिकतर, फाड् फक; येना-रोटकाः उतारा
डोला, आदि के विविय उपचारों प्रकारो से भूतमे तादि को और
रोगादि की की जातो है। याज्ञवल्क्यस्मृति के समय तक ये
चार एकन करके एक অনা তি বমি थे, पर नाम इस एक
उपदेव के छ रहे, जो उक्त चार के हो रूपातर हैं, यथा,
शाछ, कटकट, कृष्माड, राजपुत्र, मित और सम्मित
(१ २७१, २८५)।
इस परिवर्चन से क्या अर्थ निकालना चाहिये?
यात यह है कि समी संसार परिवर्तनशीर है। सभ्यता
शालेनता, च पूर्य, पजा शर्वा, विद्यास छ्राचार रहन सदन
समो के रूप बदछते रहते हैं। मूलतत्तय, जिनका प्रतिपादन হ্হী-
नों में किया है, पे नहीं घद्लते | मनुष्य की परिवत्तमान प्रकृति
के अनुसार उसकी सभी सामग्री वदल्सी रहती है।
श्रद्धामयोध्य पुरुष यो यन्छुद्ध स एच स 1
यजते सात्तविका ०्वान् यक्तरक्षासि राजसा ।
परे तान भूतगणाइचान्ये यजते तामसा जना ॥| ( गीता )
यदन्न पुसपो मवति तद्-नास्तस्य देवता ॥ ( रामायण )
वान देवयजो याति मदमा याति मामपि ॥ ( मीत )
“श्रद्धा हो पुरुष का स्वभाव है, तात्त्विक स्वरुप है, किसकी
जो श्रद्धा है, हृदय फी इच्छा है, यही वह् है । सात्त्विक जीव देवों
को पूजते है, राजस यक्त राक्षसा को, तामस भूतप्रेवों को ।
जो शन्न मलुप्य बाता है वही उसे देवता सति है 1
वताम के पूजने बाड ठेवतामे पे पास जाते हैं, मेरा भक्त
मेरे पास आता है। ?
User Reviews
No Reviews | Add Yours...