प्राचीन जैनपद शतक | Pracheen Jain Pad Shatak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
426
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९१३ )
अपनो पद, तनि ममता टुखकारी । श्रावक इल
মনত तर आयो, बरड़त क्यौरे अनारी ॥ अरं
।॥ २ ॥ अचद्र चेत गयो कछु नाहीं, राखि आपनी
वारी ! छक्तिसमान त्याग तप करिये; तव उवः
जन सिरदारी ॥ अरे ॥ ३ ॥
२७ राग--काफी कनडी।
में देखा आतमरामा ॥ मैं ॥ देक ॥ सूप
करस रस गन्धतैं न्यारा, दरस-ज्ञान-ख्नधामा ।
नित्य निरंजन जाके नाहीं, कोध लोभ मद् कामा।
में ॥ १ ॥ मुख प्यास खुख दुख नहिं जाके, नाहीं
चन पुर गासा । नहिं. साहिब नहिं चाकर भाई,
नदीं तात नहिं भामा ॥ में ॥श॥ झूलि अनादिथ-
की जग मरकत, छै पुद्गलका जामा । डधजन सं-
गति जिनगुरुकीतें, में पाया सुक ठामा | मै ॥२॥
२८ राग--काफी জলভী-_ আন্ত অজনী |
अब जच करत জা ই सादं ॥ अव ॥ देक
चक घर उत्तम कुल आयो, भेंटे श्रीजिनराथ ॥
अब ॥१॥ घन वनिता आशभ्ूषन परिगह, त्याग क-
रो दुखदाय । जो अपना तू तजि न सके पर, सैर्या
नरक न जाय ॥ अब 0 २ ॥ विषयकाज क्यौ ज-
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