प्राचीन जैनपद शतक | Pracheen Jain Pad Shatak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९१३ ) अपनो पद, तनि ममता टुखकारी । श्रावक इल মনত तर आयो, बरड़त क्यौरे अनारी ॥ अरं ।॥ २ ॥ अचद्र चेत गयो कछु नाहीं, राखि आपनी वारी ! छक्तिसमान त्याग तप करिये; तव उवः जन सिरदारी ॥ अरे ॥ ३ ॥ २७ राग--काफी कनडी। में देखा आतमरामा ॥ मैं ॥ देक ॥ सूप करस रस गन्धतैं न्यारा, दरस-ज्ञान-ख्नधामा । नित्य निरंजन जाके नाहीं, कोध लोभ मद्‌ कामा। में ॥ १ ॥ मुख प्यास खुख दुख नहिं जाके, नाहीं चन पुर गासा । नहिं. साहिब नहिं चाकर भाई, नदीं तात नहिं भामा ॥ में ॥श॥ झूलि अनादिथ- की जग मरकत, छै पुद्गलका जामा । डधजन सं- गति जिनगुरुकीतें, में पाया सुक ठामा | मै ॥२॥ २८ राग--काफी জলভী-_ আন্ত অজনী | अब जच करत জা ই सादं ॥ अव ॥ देक चक घर उत्तम कुल आयो, भेंटे श्रीजिनराथ ॥ अब ॥१॥ घन वनिता आशभ्ूषन परिगह, त्याग क- रो दुखदाय । जो अपना तू तजि न सके पर, सैर्या नरक न जाय ॥ अब 0 २ ॥ विषयकाज क्यौ ज-




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