संस्कृत शिक्षा | Sanskrit Siksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
75
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ই ॥
एकतािपयंये कुफलदृष्टान्तः ॥
एकाद्राः पृथ्प्रौवा अन्योन्यफषट पक्षिणः ।
असंहता विनश्यन्ति भारण्डा इव पक्षिणः ॥
कस्सिश्चिट्सरोवरे भारण्इ नासा पक्येकेदरः पएथग्ग्रीवः
प्रतिबसति सस, तेन च समुद्रतीरे परिख्षमता किज्विट्फलस-
अतकलगन्तरङ्काकिष्ठं सम्प्राप्तम् । साऽपि भ्रक्षयन्निद्माह अहे
अहूनि मयामृतप्राग्राणि समुद्रकल्लोलाइतानि फलानि भक्षि-
तानि । परमपूर्वीज्स्पास्थादुः तत्किस्पारिजातह रिचन्दनतक-
सम्भवद्धिं बा फिल्थिद्ससतम॒पफ्लसड्यक्तेनापि विधिनापति-
लस् ( 9 )। एवन्तस्य ब्रुबति। द्वितौयमुखेनाभिहितम् । नने
यद्योवग्तन्मनापि स्तोक्प्रयच्छ येन जिद सै ख्यमनुप्वानि ।
तते विहस्य प्रथमवक्त् शाभिहितम् । अवयेस्तावदेकञुदर”
मेका लुसिश्व भवति ततः कि एथरभक्षितेन । वरसनेत शेषेस
प्रिया तैच्यते । एवलमिधाय तेन शेषस्पस्ारण्डगः प्रदत्तलू।
सापि तदास्वाद्य प्रहष्टलमनेकचाटुपरा बभ्रूव । द्वितीयं
( १) भभ्बन्तेन भतीग्छ्रियेण भमूततेनति यावत् । विधिना दैवेन । भाप-
লিনমূঘ स्यतम् ॥
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