सार्थवाह | Sarthwah

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Sarthwah by डॉ. मोतीचन्द्र - Dr. Moti Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) चलगैचंणे साथवाहों के ्रधिषाता देवता माणिभ| यह मे । सारे उत्तर भारत में माणिभा की पूजा के किये मल्दिर थे । ज्धुरा के परसत् स्थान से म्िज्ी हुईं सहाकाय यह मूत्ति सा्यिभद्र की ही है। लेकिन पाया ( प्राचीन पश्मावती, ख्वाज्ियर ) में साधिभद्र दी पूजा চা মতা देख था| उत्तर भारत में दविस़नन को जानेबाले साथ हसरी मान्यता मानते थे। वन पव॑ क तलोपाएथान मे उरकेण श्राता है कं एक बहुत बढ़ा साथ जाम कमाने के लिये चेदि जनपद को जाता हुआ ( ६१.१२२ ) वेत्रवती तवी पार करता है भौर दयन्त उसी का साथ पकड़कर चेढि पहुँच जाती है। 5प्त साथ का नेता घने जंगल में पहुँचकर यछराष सणिभद्र वा स्तरण करता है ( परयाम्यसिखने कष्टे अम्ननुष्यनिपेविते। तथा नो यक्तराड पणिभद्र' प्रसौदतु । ( चन० ६१॥१२३ )। संयोग से बनपव झ० ६१-३२ में प्रद्माताथ का बहुत ही भरड्ा वर्णन उपलब्ध शेता है । उप मद्गासाथ में हाथी, घोड़े, रथी की मीड़भाद़ थी (इस्यश्वरथ संकुत्तम )। उसकें पेद, रे ॐ, ध्र पैदल कौ शवनी श्रधिक संस्या थी ( गोसरोह्राश्य बहुलपद्माति क्ष्- संलम्‌, ६२1६ ) क चलता हुभा हासाय प्रदुष्यों का समुद्र! (जनाणंव, ६१९१२ ) सा জান पदता धथा। समृद्ध पार्थं संउल (६२१० ) के सदरप साथिक थे (६२८) | उसमें मुख्यतः प्यापारौ षनिये ( वणिजः ) थे केकिने रके साथ वेद्‌ पीरा ब्रा्ठण भी रहते ये ( ६९॥१७ ) | साथ का नेता सार्थवाह का जात था । ( धं ाय॑तय नेता थे साथवाह! शुचिस्मिते | ६११। ६२२ )। साथ में बडे वृदे, जवाब, बच्चे सब भायु के पुरुष सत्री रहते थे «- साथंवाह॑ थ्‌ साथ च जना ये भात्र केचन। ६२११७ यूनः स्थविस्वात्ाश्व साथंत्य च पुरोगमाः। ६२११८ हुए कोग मनचणे भी थे भो दुयन्तौ के पाथ रोली रमै लगे लेकिन जो भले भान थे र्मे दया कते हष उससे सव शलाक पूषा । यह थह भौ का रै फ साथ के झागे-झागे चतनेवाले भरुप्यौ छा एक क्था र्ता था। संर्भवता पह हुकद्ी मार्ग दी सफाई का महत्वपूरं काम करती थी। साथवाह त कवष साधं कष वेता था, वरम्‌ षह साथ के यात्रा-काज़ में थपने भहासाथ का प्रभु होता था (११।॥१२१)। सायंकाल मे प्र साथ की सवारियाँ थक साती थीं ( कुपरिान्दवाहाः ) घौर तव सार्थवाह की समाति ते कषिी অন খান ঈ पदराव ( निवेण) ६९।४; वृह सत्र माप्य १०-६॥ में भी साथ की बस्ती दिपेश कही गयी है। ) डाला जाता था। इस साथ ने क्या भूल की कि सरोवर का रास्ता कर ঘবান ভাজ দিঘা। ब्ाधीरात के सत्य हाथियों का झुड पानी पीने भाया भौर उसमे सोते हुए साथ को रौंद डाज्ा। कुछ्ठ कुचल गए। कुछ फर भाग गए, साधं मे हाहाकार मच गया । लो धच गप ( हतशिप्टे। ) उन्होंने फिर आगे को यात्रा छरू की |! प्राचीन काल भं महाधाधं का जो ठट था उसका घडा चित्र म्रह्दभारत के इस वर्णन में बचा रह गया है। साथवाहों धौर जज्न-यत्ष के यात्रियों हारा भारतीय कहानी साहित्य का भो खूब विस्तार हुआ। समुद्र के सम्बन्ध में अनेक यक, नाग, सूत-मेतों की भौर भौँति-माँति के जलधर एवं दैवी भारदयों की कह्ामियाँ नाविक के मुंह से सुनी जाती थीं | लोग यात्रा मँ उनसे झपुना समय बादते थे, झतएुप उस कहानियों के झ्रप्निप्राय साहिस्य में भो सर गए ।




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