अथ सौन्दय्यर्यलहरी | Ath Saoundaryalehri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
66
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री शंकराचार्य - Shri Shankaracharya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाषार्टीकासदित । १५
भा० टी०--अव श्रीदेवी ओर देवको पृथक् पृथक् प्रकारमानं होत
संतें भी परस्पर प्रीति स्नेदाधिक्य से रेक्यता वर्णन करे दै-तदां करद दै
किं देदेवी ! जिस समयमे श्रीशिवनी का बाया अंग अर्छशरीर तुमने ग्रहण
किया तिप्त समयमें शेषजी जो दक्षिण भाग अद्ध है सोभी तुमने इरस्या
লা निश्चय होता दै--क्योकिं अरुण जो तुम्दारा शरीर तिस्तकी छायाकरके
संपूर्णदी अरुणद-और चिन्ददे सोभी तुम्हारे रूपमे दे-ओर शारीरके एक
दनेसें कुचों करके झुकेहुए संपूर्णशरीर में हें सोभी तुम्दारादी रूप है-
और चंद्रकछा जिसमें देदीप्यमान ऐसा गो शिरोभुपण मुकुट सोभी
तम्डारादी मुपण प्रसिद्धदै-इसदेतु श्रीभगवतीजी निश्चय है कि शिवजीके
अर्छध॑शगीरसे तम्हारा मन হুল লনা हुआ, तब अपनी अरुण प्रभा करके
शिवजीसे एक स्वरूप धारण किया दे ॥ २३ ॥
जगत्सूते घाता हरिखति रुद्रः क्षपयते, तिरस्कुरवनेत-
त्स्वमपि वपुरीशस्तिरयति । सदा पूरैः सर्व तदिदमतु-
ग्रह्धातिं च शिव, स्तवाज्ञाषार्म्न्य क्रणचारतय
अरतिकर्योः ॥ २४ ॥
মা टी०--अव्र कहते दै कि सष्टिका रचना पालन संहार इनमे ब्रह्मा
आदिं तीन देवतार्ओको एथक् प्रथक् यदपि मुूयता है जो राणाके समानं
श्रीभगवतीजीकोदी सवै करत्वे यद वर्णन करें ईं-जगत्सूते-इस पद्य करके
तहां कहतेहं कि-हेमात;] आपकी जो चंचल भौँ हैँ इनकी आज्ञाको आठ
करकेदी ब्रह्मा साष्टि करे है और तैसेंदी श्रीहारे पालनकरें--और सद्र संहार
करें हें फिर संद्ारंके अनंवर ओऔरुद्र अपना, शरीर भी छयको प्राप्त करें है,
और जब श्रीसदारिवजी सब णीवोंको उनके वीजरूंप कर्मसद्दित यथा-
बकाश अपनेमें घारण करें हैं--यहां प्रयोजन यह दे कि-आपका यह भ्ृकुटी
विलासी सव प्रकारे चतुश्च খুলল ই ॥ २४ ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...