वीर शिवाजी नाटक | Veer Shivaji Natak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Veer Shivaji Natak by नत्थीमल उपाध्याय - Nathhimal Upadhyay

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नत्थीमल उपाध्याय - Nathhimal Upadhyay

Add Infomation AboutNathhimal Upadhyay

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श४्र . ज़ेड नंटो-नाथ लाए न भारतवर्ष झघः पतन की शोर शससर क्यो दी रही दे १ के कठोर धस्थनमें जकड़ा हुआ छापने भाग्य के करी रो रहा दिम प्रति दि हिन्दू जाति के ह्लास झौर भारतवासियों के चनने कर बया कारण है है इस सब भारतीय दुग्सं सागर से किस प्रेकार पार देसिकते हैं ? इसका कोई उपाय बतला कर मेरे हृदय की खिश्ता मिटाइये । स०--प्रिये इमारी घंरू फूट छोर चरिन्नह्वीनता ही ने हमारे प्यारे और इम समय भारतवासियोकी यद दुद्शा की है । दम इंश्वर की भक्ति तथा शपने कम्में को भूलकर नास्तिकता घकमरयता ्यालश्य ब्यघ चश्मे ज्ञान झौर भयानक स्ान्ति तथा भीषण के बुत चुरी तरह शिकंगर हे। रहे हैं यही हमारे सबनाश और छाधघःपतन का एक मात्र प्रधान कारण है ।.जघ इम समस्त भारतवासी श्पनी सम्पूरण भीपण भूल को भूल कर प्रमा # तथा घरम के पारादार में डुबकियां खगाने लगेंगे । छर देश तथा ज्ञाति के लिये छापने माय निछावर करने का सदचदा तत्पर रहेंगे । छापने जीवन का खहुच घलिदान करदेंगे प्रर्तु झपने कत्तव्य एय से तिल भर भो नहीं दटेंगे। तभी हमारा श्र दमारे देश का दुख सिन्चु से निस्तार दागा । हमारे सम्पूर्ण संकर्टों का संदार । नटी--परम्तु नाथ यह ते बतलाइये कि झपने देश- वालियों के ठीक मागे पर किस प्रकार लाया जावे श्र कप्रमा न यथा ज्ञान अयोंतू सम रहित ज्ञान 1 1




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now