निरोगी जीवन | Nirogi Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23.91 MB
कुल पष्ठ :
372
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सी.एम. श्रीवास्तव - C. M. Shreevastav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शरीर के प्रति थोड़ी-सी सावधानी और स्वास्थ्य नियमों का थोड़ा- सा ज्ञान मनुष्य को दीर्घायु प्रदान कर सकता है। मनुष्य का समस्त ढांचा उसके पाचन संस्थान के आधार पर बना हुआ है । इसका अभिप्राय यह है कि मनुष्य जिस प्रकार का आहार खाता है और उसके पाचक अंग खाए हुए पदार्थ को शरीर का अंग बनाते हैं उसी के अनुसार उसका शारीरिक स्वास्थ्य बनता है । भोजन हमारे शरीर को जीवित रखता है तथा उसे कार्यशील बनाए रखने में सहायता करता है। शारीरिक वृद्धि एवं विकास भोजन द्वारा ही संभव है । निरंतर कार्यरत रहने से कोशिकाओं की जो क्षति होती है उसकी पूर्ति भी भोजन से होती है। भोजन का पमुख कार्य है--शरीर के नि्मित्त शक्ति एवं उष्णता प्रदान करना । यदि हम कुछ समय तक भोजन ग्रहण न करें तो हमें भूख की अनुभूति होने लगेगी । यदि भूख होने पर भी भोजन न करें तो शरीर की समस्त कार्य-शक्ति क्षीण पड़ती जाएगी | फिर एक समय ऐसा आएगा कि चलने-फिरने में भी हम स्वयं को असहाय और असमर्थ पाएंगे । इससे पता चलता है कि भोजन द्वारा ही शरीर क्रियाशील रहता है । आधुनिक युग में शरीर को गतिशील बनाए रखने के लिए मादक और उत्तेजनावर्धक खान -पान का सेवन अधिक किया जा रहा है किन्तु वास्तविक स्वास्थ्य एवं शक्ति प्राप्त करने के लिए यह उचित नहीं है । स्वस्थ रूप से जीवन यापन करने का मार्ग यह है कि हम जो भी सब्जी फल दूध अनाज बभौर सूखे मेवे आदि ग्रहण करें उन्हें उनके प्राकृतिक रूप में उचित ढंग से ग्रहण करें ताकि वे हमारे शरीर के स्वास्थ्य में स्थायी निखार ला सकें। हमारे दैनिक कार्यों में शरीर के अंग प्रत्यंग निरंतर कार्य करते रहते हैं । हृदय अपनी धड़कनों द्वारा शरीर के सभी भागों को रक्त पहुंचाता है । फेफड़े प्रतिक्षण श्वास प्रश्वास द्वारा शरीर से गंदी वायु को बाहर निकालते हैं और स्वच्छ वायु ग्रहण करके रक्त को शुद्ध करते रहते हैं । पेट और आंत्र खाए हुए भोजन से पोषक तत्त्व खींचकर रक्त में मिलाते रहते हैं तथा बचे हुए बेकार भाग को मल के रूप में शरीर से बाहर निकाल देते हैं । इसी प्रकार गुर्दे मृत्र एवं पसीने के रूप में बेकार तत्त्वों को शरीर से बाहर करते रहते हैं। जहां हमारा मस्तिष्क सोच-विचार करता है और शरीर की समस्त क्रियाओं का संचालन करता है वहीं पेशियां एवं स्नायु हमारे शरीर को हरकत में लाते हैं तथा अंगों को हिलाते- डुलाते हैं । इस प्रकार हमारे शरीर में अनेक क्रियाएं निरंतर चलती रहती हैं । ये सभी क्रियाएं संपादित करने के लिए शरीर को एक शक्ति की आवश्यकता होती है और वह शक्ति हमें भोजन द्वारा प्राप्त होती है। इस शक्ति-उत्पादन की क्रिया से गरमी ऊर्जा उत्पन्न होती है जो शरीर को एक विशेष तापक्रम तक गरम रखती है। यह गरमी और गति ही जीवन के 14
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