जीवन साहित्य भाग - 1 | Jivan Sahity Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्यनारायण १३ श्रंश श्राषे एशिया खणड को जँचा । यह सत्यनारायण का त्रत भी इसी किस्म का एक ताज्ञा उदाहरण है । सत्यनारायण का त्रत इसी श्रन्तिम शताब्दी के भीतर निर्माण हृश्रा है, एेसा एक पुराण-धर्माभिमानी शाखी ने कषा था । परन्तु इस त्रत के विस्तार श्रौर लोकप्रियता को देखकर यह कहने में कोई बाधा नहीं है कि लोगों के हृदय में निवास करने- वाले धर्म का स्वरूप इस ब्रन में इृशिगोचर होता है । संसार का बहुत-सा व्यवह्वार अ्रल्प-प्राण लोगों के हाथ में होता है । बहु-जन-समाज की सत्य पर श्रद्धा बहुत थोड़ी होती है । संसार में चाहे जैसी हानि को सहन करने योग्य पुरुषार्थ लोगों में नहीं दिखाई देता । सत्यासत्य का कोई-न-कोई विधि-निषेध रक्‍्खे बिना क्षणिक और दृश्य- मान लाभ के लिए लोग वचन भंग कर डालते हैं, नियम भंग कर देते हैं श्रोर कूठे को सच्चा कर दिखलाते हैं | श्रतएब यह एक भारी प्रश्न हे कि कामना- सिद्धि के लिए सत्य को धता बताने वाले श्रश्ञ जनों को सत्य की लगन किस तरह लगनी चाहिए ओर ऐसी श्रद्धा किस तरह दृढ़ करनी चाहिए कि सत्य-सेवन ही से श्रन्त मेँ सर्वकामना-सिद्धि होती है । साधु-सन्तौ ने, नियमो की ` स्चना करनेवार्लो ने, तथा समाज के नेताओं ने अनेकों प्रकार से प्रयन्ष कर देखे हैं । सत्यनारायण-ब्रत के प्रवत्तंक ने इस प्रश्न को अपनी शक्ति श्रौर बुद्धि के श्रनुसार सत्यनारायण की पूजा श्रौर कथा द्वारा इल करने का प्रयल किया.हे | { लोगों में सत्यनारायण की पूजा प्रचलित करने से दो हेत सिद्ध होते हैं लोग सत्य-सेवी हों यह एक उद्देश्य; और सत्य की महिमा समाज मे निरंतर गाई जाया करे, यह दूसरा उद्द श्य । इस पूजा का




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