बोतलानंद | Botlanand

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Botlanand by विन्ध्याचल प्रसाद गुप्त - Vindhyachal Prasad Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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টি बोत्तललानन्द बालि-सुमीव संग्राम की पूरी तैयारी हो चुकी थी मगर दीपक নাগ ঈ জানাব में मुसलचन्द बसकर सारा गुड़न्गोबर कर दिया | जब घोतलानन्द हाभ्ेपाँच पथकने से बाज घ्य वश्च दीपन नाध ने उन्हें बताया ভিন धिष्टर यार! की घस युवती दासी का मास है भी उनकी पथ्मी की गैरहाणिरी में उसके विश्ामशह के गकध का साथ भार बहन करती है ।! फिए तो बोतलामबन्द की हँली रोके तहीं सकती थी । “ध्र लबघंग-इलायची की भाँग जुबान पर नहीं लाऊँगा ।बोतला- मन्द्‌ मे काय पक्ष लिये थे । नमेरौ भी धट सय ইশা पक पड़ा था । “छाप कौन... .7?---उनकी उत्सुकता जग पड़ी थी । दीपचन्छ नाथ सह खों तव तक तै बोले उल धा “घोधामसम्त ।” गबिल्ली के साधव से धींका हूटा ।! कह उच्दोंने हाथ बढ़ा दिया और श्राप द्रष्य न करे | उस दिन से श्रीधुत जोतशानन्द सेरे मित्र हैं ।




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