दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह | Dakshin Afrika Ka Satyagarh

Dakshin Afrika Ka Satyagarh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शहर इतिहास को एक चमड़े से ढक लेते हैं कोई-कोई नहीं ढकते । पर कोई पाठक इसका यह अथ न «करे कि वे अपनी इन्द्रियों को अपने अधीन नहीं रख सकते। जहाँ एक बड़ा समुदाय एक रूढ़ि के अनुसार चलता हो, वहाँ दूसरे समुदाय को भले दी वह रूढ़ि बेजा मालूम होती हो; पर यह बिल्कुल मुमकिन दे कि पहले की दृष्टि में वह बुरी बात कतई न हो। ' इन हबशियों को इतनी फुरसत ही नहीं होती कि एक दूसरे की ओर ताका करे । सागवत्कार कहते है कि शुकदेव जी जब नंगी नहाती स्त्रियों के बीच से होकर चले गये, तब ७५३ उनके मन में जरा भी विकार उत्पन्न नही हुआ और न उन निर्दोष स्त्रियों ही के सन मे क्षोभ हुआ और न कोई शर्म मालूम हुई । इसमे सुके कोई बात अलौकिक नहीं सालूम होती । हिन्दुस्तान मे आज ऐसे अवसर पर कोई भी इतनी निमंत्रता अनुभव नहीं कर सकता। वदद मनुष्य-जाति की पवित्रता की हृद नहीं, बल्कि हमारे दुर्भाग्य का चिह्न दै। हम जो इन्हे जंगली मानते है यह हमारे अभिमान की प्रतिध्वनि हे । जेसा हम मानते है ऐसे जंगली वे नहीं है । ये हबशी जब शहर मे आते हैं, तब उनकी स्त्रियो के लिए ऐसा कानून है कि उन्हे छाती से लेकर घुटने तक शरीर ढेंक होना चाहिए। इसलिए उनको मजबूरद्‌ एक कपड़ा लपेट लेना पढ़ता है। इसके फल-स्वरूप दक्षिण-अफ्रोका में इस नाप के कपड़े की बहुत बिक्री दोती है और ऐसे लाखो कंत्रल और चहरे' हर साल यूरोप से आतो है| पुरुषो के लिए कमर से घुटने तक बदन ढॉक रखना लाजिमी है। इससे उन्होने तो यूरोप के बने हुए की पहनने की प्रथा शुरू कर दी है। जो




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