चयनिका | Chayanika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about नेमिचन्द्र जैन - Nemichandra Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है, एक साफ-सुधरी वैश्विक (ग्लोबल) दृष्टि का उदय तब हममे होता है | इस तरह
मामायिक व्यक्ति को तो शुद्ध करती ही है, उसके जरिये वह समाज को भी स्वच्छ
बनाती है।
वस्तुत यह आध्यात्मिक विकास का सर्वप्रथम सोपान या मूलाधार है। जैसे किसान
बावनी (बुवाई) से पहले अपना खेत तैयार करता है, वैसे ही सामायिक-के-द्वाए एक
साधक अपना खेत (शरीर) तैयार करता है।
(जीवन-पीयूष) ^
स्वाध्याय की प्रक्रिया
स्वाध्याय से जो अन्तर्दृष्टि बनती है उसकी गहराई, उपयोगिता और निर्मलता को शब्दो
मे प्रकट करना संभव नही है। स्वाध्याय मे हम समग्र हो कर किसी बात को समझने-बूझने
का यत्न करते है, वहाँ कोई दबाव या लाचारी नही होती, इसीलिए हम स्वाध्याय की
भावनात्मकता के साथ उसकी कर्मनिष्ठा के भी पक्षधर है । स्वाध्याय से प्राप्त आलोक को हमे
अपने क्रिया-कलाप मे प्रतिविम्नित करना चाहिये । स्वाध्याय कै बाद की यह साहजिकः
क्रिया है। हमे चाहिये कि जो कुछ हमारे अतरग मे सुलगे, स्फूरित हो उसकी गर्मी और सुखट
ऐेशनी का छाभ समाज को दे, और सच यह है कि आप दे या न दे, यदि आप सच्चे
स्वाध्यायी हैं तो आप मे उठी रोशनी समाज तक पहुँच ही जाएगी। सूरज की और स्वाध्याय
को क्षितिज पर उदित सूरज को सकीर्णता की हथेली से ढाँकना सम्भव नहीं होता, उमकी
पृदु र्मियाँ इस या उस मार्ग से अपने एक गन्तव्य तक अवश्य पहुँच जाती है | इसलिए
स्वाध्याय के साथ हम नयी भूमियो और भूमिकाओ को खोज़े और उमके बाद आत्मोन्धान
करते हुए समाज को उसका देय दे । जोत पर जोत प्रज्ज्वलित हो ज्ञान গা হুল अभिक्रम
स्वाध्याय की प्रक्रिया मे अन्तनिर्दित है। सम्यक्त्व के म्ठाध्याय व्य मए प्येद्ध व्यू मर्वश्रप्र
उपाय रलत्रय-सहित आत्मा का अनुभव सम्यक्त्व की अन्भूति है। ब्ी पच्चित्र तीर्द है और
फोई तन्त्र-मन्त्र नही है जो आत्मोदय की निर्मल दशा तक लंठ्व्न दे ज्ञर में सम हो ।
स्वाध्याय ; प्रन्थ/निर्ग्रन्ध
जब सम प्रन्य-स्वाध्याय मे-से निष्णात हुए निप्रस्थ-स्त्रख्थाद # लेकर में पंच ठन
एव सच मानिये भेद- विज्ञान के तमाम वेभव ইল লক ক্লু
अन्वहान ज्ञागलोक मे कृनकृत्य हो उठे
^ प १
५
।
৭
|
भ (५
(पिन सोझा कि धर!
चदरिङः ~ 32 ह)
User Reviews
No Reviews | Add Yours...