श्री सिद्धचक्र विधान | Sri Sidhchakra Vidhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शा | [ शिद्धचक् की स्थापना कर दिल्‍ली दरियागंज में अहिंसा मन्दिर का निर्माण कराया जिसमें श्री दिगम्बर जैन मत्दिर, धमंशाला, वाचनालय, बोषधघालय व नसिंग होम आदि चल रहे हैं। उन्होंने १६४५४ में मूडविद्री से धवलादि ग्रन्थों को दिल्‍ली लाकर जोर्णोद्धार कराया । १९४५६ में मध्य प्रदेश में जो मूर्ति ध्वंस करवाई हुई उसमें से ८० मूर्तियों के सर दिल्‍ली स्थित मोहनजीदारों फर्म के मालिक श्री वत्ता के यहां से पकड़वा कर आतताइ्यों को सजा दिलाई व अनेकों कार्य किये । उनके पुत्र श्री प्रेमचम्द्रेजी ने अनेकों जगह शीतल जल प्याउओं का निर्माण कराया। हरिद्वार, पिलानी, कुरुक्षेत्र आदि व दिल्‍ली के आसपास जहां जैन मन्दिर नहीं थे वहां अनेक जन मन्दिरों का निर्माण कराया है। जम्बुद्ीप हस्तिनापुर में सुमेरु में एक चैत्यालय का निर्माण कराया आदि । मूडविद्वी के सिद्धांत वस्ती (मन्दिर) में श्रीमती कृष्णादेवी--राजकृष्ण जैन घवलोद्धार कक्ष का निर्माण कराया, श्रवणवेल में श्रीमती पद्मावती प्रेम चन्द्र जेन सावेंजनिक पुस्तकालय का निर्माण, मायसोर विद्व विद्यालय में जेन दर्शन व प्राकृत पढ़ने वाले छात्रों के लिए श्री राजकृष्ण जैन शिष्य बत्ति कोषकी स्थापना की । भारतीय व विदेशी विदव विद्यालयों में व जेलों में जेन साहित्य भेंट किया । बाहर से आने वाले प्राय: सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपने यहां ठहराते हैं ओर उनके विश्वाम की सभी प्रकार की व्यवस्था करते हैं। सच्चाई तो यह है कि श्री प्रेमचन्द्र जी अपने आप में एक चलती - फिरतो संस्था है। अन्य संस्थाएं जो काम नहीं कर पातीं वे आप स्वयं करते हैं। धर्म प्रचार की आपको अच्छी लगन है। इस पुस्तक का प्रकाशन कर आपने साहित्यिक क्षेत्र में एक कमी को पूरा किया है। इस उपलक्ष में हम उनका साधुवाद करते हैं । (पं०) लाल बहादुर शास्त्री शानयोगी पर्डिताचाये भट्टारक अध्यक्ष, भा ० दि० जेन शास्त्री परिषद चारुकीति स्वामी गांधी नगर, देहली थी दि० जेन मठ, मूडविद्वी (जो) वास्त्रो (द० कन्नड़) वीर सेवा मन्दि, २१: दरियागंज, दिल्‍ली




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